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________________ जैन प्रमाणशास्त्र में अवग्रह का स्थान 211 आगमनिरूपित ज्ञान का प्रमाण-भेदों में समावेश आगमों में ज्ञान का जो निरूपण उपलब्ध होता है वह सब प्रमाण-विवेचन में भी समाविष्ट हो गया । आगमों में ज्ञान के मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान और केवलज्ञान नामक पांच भेद प्राप्त होते हैं । मतिज्ञान का उल्लेख आभिनिबोधिक शब्द से भी हुआ है । तत्त्वार्थसूत्रकार उमास्वाति (द्वितीय शती) ने ज्ञान के इन पांच भेदों का समावेश प्रमाण के दो भेदों में किया है। प्रमाण के दो भेद हैं- 1. प्रत्यक्ष और 2. परोक्ष । 'आद्ये परोक्षम्' तथा 'प्रत्यक्षमन्यद्' इन दो सूत्रों से उमास्वाति मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का अन्तर्भाव परोक्षप्रमाण में करते हैं तथा अवधि, मनःपर्याय और केवलज्ञानों का समावेश प्रत्यक्ष प्रमाण में करते हैं।' प्रत्यक्ष और परोक्ष के इस विभाजन में आत्ममात्र सापेक्ष ज्ञान को प्रत्यक्ष तथा शेष अन्य ज्ञानों को परोक्ष कहा गया है। जिनभद्र (षष्ठ-सप्तम शती) अकलङ्क आदि जैनाचार्यों ने उत्तरकाल में प्रमाणमीमांसा का व्यवस्थित विस्तार किया। प्रत्यक्ष प्रमाण के दो भेद किए गए- 1. सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष और 2. पारमार्थिक प्रत्यक्ष । परोक्षप्रमाण के पांच भेद किए गए- 1. स्मृति, 2. प्रत्यभिज्ञान, 3. तर्क, 4. अनुमान और 5. आगम । सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के दो भेद प्रतिपादित किए गए- 1. इन्द्रिय प्रत्यक्ष और 2. अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष । ये दोनों भेद अवग्रह, ईहा, अवाय एवं धारणा रूप होते हैं । पारमार्थिक प्रत्यक्ष के पुनः तीन भेद किए गए- 1. अवधिज्ञान, 2. मनःपर्यायज्ञान और 3. केवलज्ञान नन्दी सूत्र, षट्खण्डागम आदि श्वेताम्बर और दिगम्बर आगमों में आभिनिबोधिक अर्थात् मतिज्ञान के श्रुतिनिश्रित रूप में चार भेद प्रतिपादित हैंअवग्रह, ईहा, अवाय (अपाय) और धारणा। मतिज्ञान के आगमनिरूपित इन चार भेदों का समावेश सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष-प्रमाण के भेदों में हुआ है । स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान नामक परोक्षप्रमाण मतिज्ञान के ही पर्याय हैं। यह बात उमास्वाति के 'मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्' सूत्र से सिद्ध होती है। श्रुतज्ञान का समावेश आगम प्रमाण में होता है।
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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