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________________ 110 जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन कुछ करती है और न पर कुछ करता है। न पुरुषकार है और न बल है, न वीर्य है, न पुरुषस्ताम है, न पुरुषपराक्रम है। सभी सत्त्व, सभी प्राणी, सभी भूत और सभी जीव अवश हैं, अबल हैं, अवीर्य हैं। नियति के संग के भाव से परिणत होकर वे छह प्रकार की अभिजातियों में सुख-दुःख का संवेदन करते हैं।" __ जैनागम सूत्रकृतांग, भगवतीसूत्र और उपासकदशांग जैसे प्रमुख जैनागमों में नियतिवाद का निरूपण एवं निरसन हुआ है। सूत्रकृतांग (2.1.665) में नियतिवाद के सम्बन्ध में कहा गया है- “पूर्व आदि दिशाओं में रहने वाले जो त्रस एवं स्थावर प्राणी हैं, वे सब नियति के प्रभाव से ही औदारिक आदि शरीर की रचना को प्राप्त करते हैं। वे नियति के कारण ही बाल, युवा और वृद्धावस्था को प्राप्त करते हैं और . शरीर से पृथक् होते हैं। वे नियति के बल से ही काणे या कुब्ज होते हैं । वे नियति का आश्रय लेकर ही नाना प्रकार के सुख-दुःखों को प्राप्त करते हैं।"59 उपासकदशांग में गोशालक के अनुयायी सकडालपुत्र की नियतिवादी मान्यता का भगवान् महावीर के द्वारा खण्डन किया गया है तथा प्रयत्न, पुरुषार्थ, पराक्रम आदि के महत्त्व का स्थापन किया गया है। ___ जैनाचार्य सिद्धसेनसूरि ने द्वात्रिंशद्-द्वात्रिंशिकाओं में 16 वीं द्वात्रिंशिका में नियति का विवेचन किया है। इन्होंने नियति के स्वरूप की चर्चा करने के अनन्तर सर्व सत्त्वों के स्वभाव की नियतता प्रतिपादित की है। जीव, इन्द्रिय, मन आदि के स्वरूप का भी प्रतिपादन किया है तथा स्वर्ग-नरक की प्राप्ति नियति से स्वीकार की है। ज्ञान को भी उन्होंने नियति के बल से स्वीकार किया है। हरिभद्रसूरि के शास्त्रवार्तासमुच्चय में नियतिवाद का उपस्थापन किया गया है। नियतिवाद के अनुसार सभी पदार्थ नियत रूप से ही उत्पन्न होते हैं। नियति के बिना मुंग का पकना भी सम्भव नहीं है। कार्य का सम्यक् निश्चय नियति से होता है। नियति के बिना कार्य में सर्वात्मकता की आपत्ति प्राप्त होती है अन्यथा नियतत्वेन सर्वभावः प्रसज्यते। अन्योन्यात्मकतापत्तेः क्रियावैफल्यमेव च। -शास्त्रवार्तासमुच्चय, 2.64 सन्मतितर्क के टीकाकार अभयदेवसूरि ने नियतिवाद के पक्ष को प्रस्तुत करते हुए काल एवं स्वभाव को भी नियति में ही सम्मिलित कर लिया है, जैसा कि कहा
SR No.022522
Book TitleJain Dharm Darshan Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2015
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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