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________________ (१७) चतुर्थोऽध्यायः पहिरवस्थिताः। मनुष्यलोक के बाहिर ज्योतिष्क अवस्थित ( स्थिर ) होते हैं वैमानिकाः। वैमानिक देवों का अब अधिकार कहते हैं. विमानों में उत्पन्न होते हैं वे वैमानिक. (१८) कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च । कल्पोपपन और कल्पातीत ( इन्द्रादि की मर्यादा रहितअहमिन्द्र ) ये दो भेद वाले वैमानिक देव हैं. (१६) उपयु परि । वे वैमानिक देव एक एक के ऊपर (चढ़ते चढ़ते) रहे हुवे हैं. (२०) सौधर्म-शान-सानत्कुमार-माहेन्द्र-ब्रह्मलोक-लान्तकमहाशुक्र-सहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेय केषु विजय-वैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थसिद्धे च । - सौधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार में, आनत-प्राणत में मारण अच्युत में; नवअवेयक में, विजय वैजयन्त जयन्त और अपराजित में तथा सर्वार्थसिद्ध में वैमानिक देव होते हैं. ___ सुधर्मा नाम की इन्द्र की सभा है जिसमें वह सौधर्म कल्प, इशान इन्द्र का निवास स्थान वह एशान कल्न, इस तरह इन्द्र के निवास योग्य सार्थक नाम वाले कल्प जानना. लोक रूप पुरुष की ग्रीवा (गर्दन ) के स्थान में रहे हुवे अथवा ग्रीवा के आभरणभूत अवेयक जानने. आबादी में होने के विघ्नं के कारणों को
SR No.022521
Book TitleTattvarthadhigam Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1971
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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