SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ तृतीयोऽध्यायः उसका विस्तार नीचे १०२२ योजन का, बीच में ७२३ योजन का और ऊपर ४२४ योजन का है सिंह निषद्याकार यानी सिंह बैठा हुवा हो ऐसे आकार का यह पर्वत है. इस किल्ले जैसे पर्वत में आए हुवे अढी द्वीप मनुष्य क्षेत्र कहा जाता है. क्योंकि मनुष्यों का जन्म-मरण वहीं होता है, दूसरी जगह नहीं होता है। (१४) प्राग्मानुषोत्तरान्मनुष्याः । मानुषोत्तर पर्वत के पूर्व में (५६ अन्तर द्वीप और पेंतीस वास क्षेत्र में ) देवकुरु और उत्तरकुरु की गिनती महाविदेह क्षेत्र में शामिल होने से ३५ क्षेत्र होते हैं) मनुष्य उत्पन्न होते हैं. (१५) आर्या म्लिशश्च । आर्य और म्लेच्छ दो प्रकार के मनुष्य होते हैं. भरतादि क्षेत्र में साढे पच्चीस देशों में आर्य उत्पन्न होते है और म्लेच्छ दूसरे देशों में उत्पन्न होते हैं. (१६) भरतैरावतविदेहाः कर्मभृमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तरकुरुभ्यः । देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड कर भरत ऐरावत और महाविदेह ये कर्मभूमीये हैं. सात क्षेत्र पहले गिने जिससे महाविदेह में देवकुरु उत्तरकुरु का समावेश होता है इसलिये यहाँ उन दोनों को अलग किये हैं. (१७) नृस्थिती परापरे त्रिपल्योपमान्तमुहर्ते । मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की और जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त की है. (१८) तिर्यग्योनीनां च ।
SR No.022521
Book TitleTattvarthadhigam Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1971
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy