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________________ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् (१२) अल्पबहुत्व - क्षेत्रादिक ग्यारह द्वार से कहा है वह इस तरह क्षेत्र - जन्म से कर्मभूमि में और संहरण से अकर्मभूमि से भी सिद्ध होते हैं. संहरण से सिद्ध थोडे है और जन्म से सिद्ध असंख्यात गुण है. ११० संहरण दो प्रकार का है-स्वयंकृत और परकृत । स्वयंकृत-चारण विद्याधरों का संहरण-गमन • परकृत - देव, चारण मुनि, और विद्याधरों ने किया हुआ. कर्मभूमि- अकर्मभूमि- द्वीप- समुद्र ऊर्ध्व-अधो-तिर्यग लोक क्षेत्रों के भेद हैं. उसमें सबसे थोडे ऊभ्वं लोक में से, और उससे संख्यात गुण अधो लोक में से, और उससे संख्यातगुणा तिर्यगलोक में से सिद्ध होते हैं. सबसे थोडे समुद्र में से और उससे संख्यात गुणा द्वीप में से सिद्ध होते हैं, यह सामान्य से वहा. विशेष से इस तरह जानना. सबसे थोडे लवण समुद्र में से, उससे कालोदधि में से संख्यातगुणा और उससे जंबुद्वीप में से, संख्यातगुणा, उससे धातकीखंड में से संख्यात गुणा, उससे पुष्करार्ध द्वीप में से संख्यातगुणा मोक्ष में गये हुवे हैं । 1 काल-तीन प्रकार के है-अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी, अने अनवसर्पिणी उत्सर्पिणी | यहां सिद्ध के व्यंञ्जित-अव्यञ्जित भेद से विचार करना. पूर्वभाव की अपेक्षा से सबसे थोडा उत्सर्पिणी सिद्ध, उससे विशेषाधिक अवसर्पिणी सिद्ध, और उससे अनवसर्पिणी- उत्सर्पिणि सिद्ध संख्यात गुण जानना. वर्तमानभाव की अपेक्षा से कालाभाव में सिद्ध होते हैं, यतः अल्प बहुत्व नहीं है. गति - वर्तमान काल की अपेक्षा से सिद्धिगति में सिद्ध होते हैं, यतः अल्पबहुत्व नहिं है. अंतर बिना पूर्वभाव की अपेक्षा से केवल मनुष्यगति में से सिद्ध होते हैं । यतः अल्पबहुत्व नहीं है । अंतर बिना
SR No.022521
Book TitleTattvarthadhigam Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year1971
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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