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________________ - भाषा छंद सहित। अब मागे मूलसूत्र अनुसार भाचार्य उमास्वामी वा भाषाकार क्षमा प्रार्थना करै हैं। अक्षरमात्रपदखरहीनं व्यञ्जनसन्धिविवर्जितरेफम् । साधुभिरत्र मम क्षमितव्यं को न विमुह्यति शास्त्रसमुद्रे ॥१॥ दशाध्याये परिच्छिन्ने तत्त्वार्थे पठिते सति । फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनिपुङ्गवैः ॥ २ ॥ तत्त्वार्थसूत्रकर्तारं गृद्धपिच्छोपलक्षितम् । वन्दे गणीन्द्रसंजातमुमास्वामिमुनीश्वरम् ॥ ३॥ दोहा। स्वर पद अक्षर मात्रिका, जानो नहीं विराम । व्यंजन संधि रु रेफको, नहिं पहिचानो नाम ॥१॥ क्षमौ साधु मों अधमकों, धारौ क्षमा महान । शास्त्र समुद् गम्भीरको, किनि अवगाहौ जान ॥३॥ चौपाई। तलारथ इस अध्याय माहिं । भाषों मुनिपुंगव शक सुनाहिं॥ जो नर भाव धारि यह पढे । तासु उपास सु फल लहि बढे ॥३॥ दोहा। . तत्त्वारथ इस सूत्रके, कर्ता उमामुनीश । गृद्धपिच्छ लक्षित सुलख, बन्दी खामिन ईश ॥
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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