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________________ तस्वार्थ सूत्र मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् ॥ १ ॥ बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्म्मविप्रमोक्षामोक्षः || २ || औपशमिकादिभव्यत्वानां च ॥ ३ ॥ अन्यत्र केवलसम्यक्त्वज्ञानदर्शनसिद्धत्वेभ्यः || ४ || तदनन्त जान भावलिंगी व्यवहार । पांचौको सौ है आचार || लेश्या ओ उपपाद स्थान । इनतें मुनि सब पृथक् बखान ॥ दोहा | तत्वारथ यह सूत्र है, मोक्षशात्रको मूल । नवम अध्याय पूरण भयो, मिध्यापतिको शूल ॥ सवैया | लेख मोहनि कर्म को नाश भयो, अरु ज्ञान दर्श आवनीं जानो । अन्तराय इन चार के क्षयतें, केवल ज्ञान सु होत बखानो बंध हेतु मिध्यादि कह, तिनको सु अभाव भली विधि मानो । निर्जरकर्म समस्त खिरे, सो मोक्षको मूल सो मोक्ष कहानो ॥ पद्धरी छन्द । उपशामक आदि भव्यत्व अंत । जे चार भाव क्षय मोह तंत और अन्य भाव क्षय सबै होंय । केवल सम्यक्त रु ज्ञान जोय२
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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