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________________ भाषा छन्द सहित । ॥१९॥प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानान्युत्तरम् ॥२०॥ नवचतुर्दशपञ्चद्विभेदा यथाक्रम पारध्यानात् ॥२१॥ आलोचनाप्रतिक्रमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गतपश्छेदपरिहारोपस्थापनाः ॥ २२ ॥ ज्ञानदअनशन अवमौदर्य कहो अरु व्रतपरिसंख्या नाम कहावै ॥ छोडें रस परित्यागी हैं घरसूनो गुफा निरजन वनवाशा । कायकलेश शरीरको कष्ट दिये इह षट तप वाहर परकाशा ॥२२॥ अब अन्तरंगके भेद सुनो षट तिनसों वसुविध कर्म डरो है। दोषनिवारन चित्तकी शुद्धता प्रायश्चित तसु नाम धरो है॥ गुणगौरव आदरभाव करें सो विनय वृत्त साई विनय भरो है। रोगसहित मुनि तिनकी सेवा बैय्यबत तसु नाम परो है ॥२३॥ स्वाध्यायकर ज्ञान बढावत आतम हित चितमाहिं धरो है। तजि संकल्प शरीर है मेरो यह व्युतसर्ग सु नाम परो है।। तत्त्वको चिंतन ध्यान कहो षट भेद सु तप अन्तरंग कहो है। भेदै नवौ चतु दश पन दो तपध्यान सु पहिले पहिल ठयो है॥२४॥ चौपाई। निसकपटी गुरुआगे कहै । आलोचन तसु नाम सुलहै।
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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