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________________ तत्त्वार्यसूत्र+मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृतां । ज्ञातारं विश्वतत्वानां बंदे तद्गुणलब्धये ॥ २ ॥ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥ १॥ तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ॥२॥ तन्निसर्गादधिगमादा ॥३॥ जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्वम् ॥४॥ नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्न्यासः ॥ ५॥ तीन भुअनमें महत पुनि अरहत ईश्वर जानियों । ये प्रशस्त पुनि मान्य हैं शुद्धदृष्टि पहिचानियों ॥१॥ छन्द विजया। +मोक्षकी राह बतावत जे अरु कर्म पहाड़ करै चकचूरा । विश्व सुतत्त्वके ज्ञायक हैं ताहि लब्धिके हेत नमो परपूरा ॥ सम्यक्दरशन ज्ञानचन्त्रि कहे एही मारग मोक्षके सूरा । तत्त्वके अर्थ करो सरधान सु सम्यकदरशन नाम जहूरा ॥२॥ होते स्वभाव निसर्गज सम्यक गुरुउपदेश सु अधिगम ताई। जीवे अजीव रु आस्रव बंध सु संबर निर्जर मोक्ष जताई ॥ जेई हैं तत्त्व सुतत्त्व भले इनकी संख्या श्रुत सात कहाई । नामस्थापन द्रव्य सुभावतें तत्त्व सु संभवता सु लहाई ॥३॥ ___+ यह श्लोक सर्वार्थसिद्धिका मंगलाचरण है ।
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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