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________________ २२ तत्वार्थ सूत्र शाचाः || ११|| ज्योतिष्काः सूर्य्याचन्द्रमसौ ग्रहनक्षप्रकीर्णकतार काश्च ॥ १२ ॥ मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयोनृलोके ॥ १३ ॥ तत्कृतः कालविभागः ||१४|| बहिवस्थिताः ॥ १५ ॥ वैमानिकाः ॥ १६ ॥ कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ॥ १७ ॥ उपर्युपरि || १८ || सौधर्मेशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मब्रह्मोत्तरलान्तवकापिष्टशुक्रमहाशुक्रशतारसहस्रारेष्वानतप्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु ग्रैवेयकेषु विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु सर्वार्थव्यंतेर किन्नर किम्पुरुष, महाउरग गंधर्व । यक्ष और राक्षस कहे, भूत पिशाच सु सर्व ॥ ६ ॥ ज्योतिष सूरज चंद्रमा, ग्रह नक्षत्र प्रकीर्ण | मेरु प्रदक्षण देते हैं मनुज लोक नित कीर्ण ॥ ७ ॥ इहीं ज्योतिष देवकर होत कालको ज्ञान । fit अढाई बाहरे इस्थिर ज्योतिष जान ॥ ८ ॥ संबैया तथा बिजया । वशी विमान सु देव कहे अरु स्वर्गेनसे सुरवाशी कहाये । स्वर्ग परें अहमिंद्र कहें अरु ऊपर ऊपर थान लहाये ॥ सौधर्म ईशान सुस्वर्ग कहे अरु सनतकुमार महेंद्र सुगाए ।
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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