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________________ तत्त्वाथसूत्र त्रिपल्योपमान्तर्मुहुर्ते॥३८॥ तिर्यग्योनिजानांच॥३९॥ .: इति तत्त्वार्थाधिगमे मोक्षशाने तृतीयोऽध्यायः ॥ ३॥ . . देवाश्चतुर्णिकायाः॥ १॥आदितत्रिषु पीतान्तलेश्याः ॥ २॥ दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्य्यन्ताः ॥३॥ इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीकप्रकर्णिकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकशः ॥४॥ त्रायस्त्रिंशलोकपालवाव्यन्तरज्योतिष्काः उत्तम भोगभुमि मनुजान । अरु तिरयंच आयु इह मान ॥२७॥ दोहा। .. तत्वार्थ यह सूत्र है, मोक्षशास्त्रको मूल । . तृतिय अध्याय पूरण भयो, मिथ्यामतको शूल ॥२८॥ राड़ा छन् । देव सु चतुरनकाय तीने में पीतलौं लेश्या । देश परकार निहार भवनवाशी मु त्रदशया ॥ व्यंतर आठ प्रकार ज्योतिषी पंच कहे हैं। द्वादश भेद निहार स्वर्गवासी सु लहे हैं ॥१॥ इंद्र. समानिक त्रायस्त्रिंशत देव पारषद हैं सु सबीके । आतमरक्ष लोकपाल षट सप्त भेद सु जान अनीके ॥ छन्द कसुमलता
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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