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________________ दोहा। तत्वार्थसूत्र विस्ताराः १३॥ पद्ममहापद्मतिगिन्छकेसरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका इदास्तेषामुपरि ॥१४॥ प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्द्धविष्कम्भो इदः ॥१५॥ दशयोजनावगाहः ॥१६॥ तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥१७॥ तद्विगुणद्विगुणा हृदाः पुष्कराणि च ॥१८॥ तन्निरूपो सोनो सु रंग लखो क्रम जान कुलाचल वर्ण लहो है॥१० बने किनारे रत्नके, ऊपर नीचे तुल्य । छहों कुलाचल जानियों, करियो भाव निशल्य ॥११॥ तिन ऊपर छह कुंड हैं, पैगद्रह महापद्म । तिगच्छ केसरी महापुंड, पुंडरीक सुख सद्म ॥१२॥ छह पर्वतके छह दहा, या विध तिनके नाम । अब आगे विस्तार, विधि, कहौं सकल सुखधाम ॥१३॥ चौपाई। . लैंबो योजन एक हजार । चौड़ाई तसु अई निहार ॥ देश योजन गहराई जान । पहिले द्रहको जान प्रमान ॥१४॥ दोहा। तामधि योजन एकको, राजत कमल सु एक । =हते द्रह दूनो लखौ, त्यों ही कमल विशेष ॥१५॥
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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