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________________ भाषा छंद सहित । देवनारकाणामुपपादः ॥३४॥ शेषाणांसम्मूर्छनम् ॥३५॥ औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ॥३६॥ परं परं सूक्ष्मम् ॥ ३७ ॥ प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक् तैजसात् ॥ ३८॥ अनन्तगुणे परे॥३९॥ अप्रतीघाते ॥ ४०॥ अनादिसम्बन्धे च ॥४१॥ सर्वस्य ॥४२॥ तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुभ्यः ॥४३॥ देव नारकी दोय उपपादक जन्म बखान ॥१५॥ शेरे जीव संज्ञा कही, सो सन्मूर्छन जान । पांच भेद वपु जानियों, ताको करौं बखान ॥१६॥ औदारिक वैक्रियक पुनि, आहारक हू जान । कारमान तैजस सहित, पांच सरीर बखान ॥१७॥ पैर परके सूक्षम लखौ, अनुक्रम उक्त बखान । [ण असंख्य परदेश हैं, तैजस पहिले जान ॥१८॥ ___ छंद विजया। अतके दोय अनंत गुणे नहीं पीत किसी परकार सु जानौ । जीव संबन्ध अनादि कहो सब जीवन माहिं लखो अनमानो ॥ एक समय इक जीवके चार शरीर सु होत सु सूत्र बखानो।
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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