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________________ ८ तत्वार्थ सूत्र ॥ ६ ॥ जीवभव्याऽभव्यत्वानि च ॥ ७ ॥ उपयोगो लक्षभम् ॥ ८ ॥ स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः ॥ ९ ॥ संसारिणो युक्ताश्च ॥ १० ॥ समनस्काऽमनस्काः ॥ ११ ॥ संसारिणस्त्रसस्थावराः ॥ १२ ॥ पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः ॥ १३ ॥ दीन्द्रियादयस्त्रसाः ॥ १४ ॥ पञ्चेन्द्रियाणि ॥ १५ ॥ द्विविधानि ॥ १६ ॥ निर्वृत्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम् ॥ १७ ॥ लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम् ॥ १८ ॥ स्प जीव भव्य अभव्य लखौ परिनामिक तीन प्रकार भनो है ॥ ३ ॥ सु ती परिणामिक लक्षण जान कहो उपयोग सु दोयें प्रकारा । ज्ञानुपयोग है आठ प्रकार रु दर्शन भेद सु चार निहारा || जीवनि भेद सु दोय लखौ संसारी सिद्ध कहौ निरधारा | मनेकर सहित रहित सथावर यों दो भेद सु सूत्र मझारा ||४|| पृथिवी जल अरु तेज सुजानो बायु बनस्पति थावर सारा । पुनि दो इन्द्री आदि लखौ त्रस संज्ञक रूप सु वेद निहारा ॥ द्रव्य अरु भाव मिलाय गिनो पंच इंद्री के भेद सु दो बखानो । इंद्रीको निवृत्त गिनो उपकर्णको चिन्ह प्रघट्य लखानो ||५|| जिर्नकर देखन जानन होय सु इंद्री भावको भाव जतानो
SR No.022517
Book TitleMokshshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhotelal Pandit
PublisherJain Bharti Bhavan
Publication Year1867
Total Pages70
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size5 MB
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