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________________ સૃષ્ટિવાદ અને ઈશ્વર बलात् लुट रहा है, हज़ारों को पेट की ज्वाला बुझाने के लिये अबला का एक मात्र धन बेचना पड़ रहा है, लाखों बेकस निरीह राजनीतिक और आर्थिक दमन और शोषण की चक्की में पिस रहे हैं, पर जो भगवान् कभी खम्भे फाड कर निकला करते थे और कोसों तक चीर बढ़ाया करते थे वह आज उस कला को भूल गये और अनन्त शयन का सुख भोग रहे हैं । फिर भी उनके नाम की लकड़ी दीन दुःखियों को थमाई जाती है। जो लोग ऐसा उपदेश देते हैं वह खूब जानते हैं कि अशान्तों को काबू में रखने का इस से अच्छा दूसरा उपाय नहीं है । 1 ४१० ईश्वरने विभिन्न मतानुयायियों को विभिन्न उपदेश दे रक्खे हैं । जगजनक होकर भी बलि और कुरबानी से प्रसन्न होता है । एक ओर विश्वेश्वर बनता है, दूसरी ओर विधर्मियों और कभी कभी स्वधर्मियों को भी मार डालने तक का उपदेश देता है । एक ही अपराध के लिये अलग अलग लोगों को अलग अलग दण्ड देता है और एक ही सत्कर्म के पुरस्कार भी अलग अलग देता है । अपने भक्तों के लिये कानून की पोथी को बेठन में बन्द कर के रख देता है । प्रायः सभी सम्प्रदायों का यह विश्वास है कि उन को सीधे ईश्वर से आदेश मिला है पर हिन्दू का ईश्वर एक बात कहता है, मुसलमान का दूसरी और ईसाई का तीसरी । इटली की सेना अबीसीनिया पर आक्रमण करती है और उभय पक्ष ईश्वर, ईसा और ईसाकी माता से विजय की प्रार्थना करते हैं । ('समाजवाद' पृ. १५, १८, १३. )
SR No.022511
Book TitleSrushtivad Ane Ishwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherJain Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1940
Total Pages456
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size22 MB
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