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________________ - સૃષ્ટિવાદ અને ઈશ્વર प्रवृत्ति नहीं होती। परन्तु ऐसा दीखता नहीं है, इस कारण इस लोक का कर्ता कोई ईश्वर नहीं है। यदि ईश्वर का स्वभाव ही कर्तृरूप माना जाय तो क्या दोष है ? इस प्रश्न का उत्तर यदि स्वभावतः ही कर्ता माना जाय तो जगत् में भी स्वभाव मानने से जगत् की उत्पत्ति आदि का सम्भव होने से असम्भव तथा अदृष्ट ईश्वर की कल्पना कहाँ तक सत्य है यह पाठकों की बुद्धि पर निर्भर करते हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि, जगत् में यह स्वभाव नहीं हो सके और ईश्वर में सम्भव हो सके। यदि यह स्वभाव ही है तो कौन किस में रोक सकता है (तदुक्तं स्वभावोऽतर्कगोचरः)। इस प्रकार कार्यत्वहेतु को सर्वतः विचारने पर भी बुद्धिमान् ईश्वर को कर्ता नहीं मना सकता। इसी प्रकार सन्निवेशविशेष अचेतनोपादानत्व अभूतंभावित्व, इत्यादिक अन्य भी हेतु आक्षेप समाधान समान होने से ईश्वर को कर्ता सिद्ध नहीं कर सकते हैं। (सृष्टिकर्तृत्व मीमांसा पृ. ७, २६) ईश्वर के कर्तृल पर स्याद्वादवारिधि पं. गोपालदासजी ने अपनी पुस्तक 'सार्वधर्म के पृष्ठ २४ पर भी बतलाया है कि संसार में जितने अनर्थ होते हैं उन सब का विधाता ईश्वर ठहरेगा। परन्तु उन सब कर्मोंका फल बेचारे निर्दोष जीवों को भोगना पडेगा। देखा! कैसा अच्छा न्याय है अपराधी ईश्वर और दण्ड भोगें जीव । इस प्रकार प्रमाण की कसौटी पर कसने से ऐसे कल्पित ईश्वर की सत्ता सिद्ध नहीं हो सकती।
SR No.022511
Book TitleSrushtivad Ane Ishwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherJain Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1940
Total Pages456
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size22 MB
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