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________________ આધુનિક વિદ્વાનોના અભિપ્રાયો ૪૦૩ ब्दियों पूर्व बौद्ध थे। और अपने धर्मभाई तिब्बतवासियों की भाँति बहुपतित्व के माननेवाले थे। तिब्बत में सभी भाइयों की एक स्त्री होने का कारण था जनवृद्धि की भीषणता का रोकना; किन्तु जब यह लोग मुसल्मान हो गये, तब खुदा के भरोसे पर लगे बच्चे पर बच्चे पैदा करने । हमारे जर्मन मित्रने उनसे पूछा-जब तुम्हारे पास खेतोंकी इतनी कठिनाई है, और जीवन-निर्वाह बहुत ही मुश्किल है, तब फिर तुम क्यों इतने बच्चे पैदा करते हो ? उत्तर मिला-जो बच्चों को देता है (अर्थात् खुदा) क्या वह उन को नहीं सँभालेगा? हमारे मित्र ने कहा-हाँ वह न सँभालेगा तो हैजाचेचक, भूख, अकाल तो जरूर सँभाल लेंगे। ल्हासा में एक मुसल्मान सजन ने अपना विश्वास इस प्रकार प्रकट कियाहमारे धर्म के अनुसार, यदि माँबाप को काफी सन्ताने हो जायँ तो उनके लिये हज करना आवश्यक नहीं रह जाता। हिन्दू भी तो 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' मानते हैं। इस प्रकार आप जितना ही सोचेंगे, मालूम होगा, ईश्वर का ख्याल हमारी सभी प्रकार की प्रगतियों का बाधक है। मानसिक दासता की वह सब से बड़ी बेड़ी है, शोषकों का जबर्दस्त अस्त्र है। क्योंकि उसके सहारे वह कहते हैं-'धनी गरीब उसी के बनाये हुये हैं', 'वह जो करता है सभी ठीक करता है', "उस की मर्जी पर अपने को छोड दो'. 'क्या जाने इन चन्द वर्षों के कष्ट के लिये मरने के बाद उसने क्या क्या आनन्द आपके लिये तैयार कर रक्खें हैं ?' 'वह यंत्रचालक की भाँति सभी प्राणियों को चला रहा है', 'मनुष्य उस के हाथकी कठपुतली है।' यह ख्याल क्या हमें अपने भविष्य का मालिक बनने देंगे ?
SR No.022511
Book TitleSrushtivad Ane Ishwar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherJain Sahitya Pracharak Samiti
Publication Year1940
Total Pages456
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size22 MB
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