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________________ 69 अवस्थाएँ मानी गई हैं। 1944 में एक पांचवीं अवस्था की खोज की गई, जिसे जैव-प्लाज्मा अथवा प्रोटोप्लाज्मा कहते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार प्रोटोप्लाज्मा शरीर की कोशिकाओं में रहता है। मरने के बाद यह तत्त्व शरीर से अलग हो जाता है और वही तत्त्व जीन में परिवर्तित हो जाता है। यह प्रोटोप्लाज्मा ही बच्चे के रूप में जन्म ले लेता है। जैन दर्शन के अनुसार इस प्रोटोप्लाज्मा की तुलना प्राण और सूक्ष्म शरीर से की जा सकती है। सूक्ष्म शरीर के कारण ही आत्मा पुनर्जन्म लेती है। व्यक्ति में पूर्वजन्म की स्मृति सूक्ष्म शरीर में संचित रहती है और निमित्त पाकर जागृत हो जाती है। विज्ञान के अनुसार प्रोटोप्लाज्मा का कण जब स्मृति पटल पर जागृत हो जाता है तो बच्चे को अपने पूर्वजन्म की घटनाएँ याद आने लगती हैं। प्रोटोप्लाज्मा की अवधारणा से आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म-ये दोनों ही सिद्धान्त स्पष्ट हो जाते हैं। पूर्वजन्म की. स्मृति सबको क्यों नहीं होती? आत्मा, पूर्वजन्म, पुनर्जन्म आदि को न मानने वाले कुछ विचारकों का यह मंतव्य है कि यदि आत्मा, पूर्वजन्म का सिद्धान्त यथार्थ होता तो पूर्वजन्म की स्मृति सभी प्राणियों को उसी प्रकार होनी चाहिए थी, जिस प्रकार उन्हें अपने बाल्यावस्था और युवावस्था की स्मृति वृद्धावस्था में होती है, पर सभी को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होती अतः यह एक मानसिक कल्पना मात्र है। यदि मरने के बाद पुनर्जन्म होता तो हमें शरीर से निकलकर आत्मा बाहर जाती हुई या किसी दूसरे शरीर में प्रवेश करती हुई क्यों नहीं दिखाई देती? इसके समाधान में कहा जा सकता है कि किसी को अपने पूर्वजन्म की स्मृति न होने पर उसके अभाव को सिद्ध नहीं किया जा सकता। इस जन्म की भी बहुत-सी बातों को हम अपनी स्मृति में नहीं रख पाते। सुबह की बात भी शाम को भूल जाते हैं अतः स्मृति न होने के कारणों का निर्देश देते हुए कहा गया कि
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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