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________________ -.61 भगवती सूत्र में संबंध सूत्रों की चर्चा अद्वैतवादियों के सामने संबंध सूत्र की समस्या नहीं थी, क्योंकि वे एक ही तत्त्व को स्वीकार करते थे। पर द्वैतवादियों के सामने संबंध सूत्र की प्रमुख समस्या थी। भगवती सूत्र में गौतम भगवान महावीर से पूछते हैं-भंते! आत्मा और शरीर सर्वथा भिन्न हैं। एक जड़ है, दूसरा चेतन। चेतन कभी अचेतन नहीं बनता और अचेतन कभी चेतन नहीं बनता अतः इनमें परस्पर संबंध होता है क्या? भगवान ने समाधान देते हुए कहा-अत्थि णं भंते! जीवा य पोग्गलाय अण्णमण्णबद्धा अण्णमण्णपुट्ठा, अण्णमण्णमोगाढा अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धा, अण्णमण्णघडत्ताए चिंळंति। हंता अत्थि। आत्मा और शरीर में परस्पर सम्बन्ध होता है। भगवती सूत्र में आत्मा और शरीर के संबध सूत्रों को विवेचित करते हुए कहा गया-जीव और पुद्गल (शरीर) एक-दूसरे से बंधे हुए हैं, एक-दूसरे - को छू रहे हैं, एक-दूसरे का अवगाहन कर रहे हैं, एक-दूसरे के आधार पर ठहरे हुए हैं, परस्पर स्नेह से प्रतिबद्ध हैं। सूत्र में आए हुए ओगाढा (अवगाढ), सिणेह (स्नेह) और घडताए (आधार)-इन तीन शब्दों को समझना आवश्यक है। 1. ओगाढा (अवगाढ़) सूत्र में आया हुआ अवगाढ शब्द अवगाहन के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अवगाढ का एक अर्थ है-परस्परेण लोलीभावं गता-जीव और शरीर में लोलीभाव संबध है। लोलीभाव संबंध में दो पदार्थ एकमेक हो जाते हैं। जैसे-लोहे को अग्नि में गरम करने पर उसका रंग लाल हो जाता है। उस अवस्था में यह नहीं कहा जा सकता कि यह लोहा है और यह अग्नि है। दोनों एक-दूसरे में अनुप्रविष्ट हो जाते हैं। उसी प्रकार आत्मा और शरीर अनुप्रविष्ट हैं।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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