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________________ 58 न्याय-वैशेषिक भी द्वैतवादी हैं। उनके अनुसार परमाणु और चेतन दो भिन्न तत्त्व हैं और ये ही सृष्टि के उपादान कारण हैं। इनका संबंध ईश्वरीय शक्ति के द्वारा होता है। पाश्चात्य दर्शन में संबंध की चर्चा भारतीय दार्शनिकों की तरह यह समस्या पाश्चात्य विचारकों के सामने भी रही। किसी ने अद्वैत मानकर संबंध की समस्या से छुटकारा पाने का प्रयत्न किया तो किसी ने द्वैतवाद को स्वीकृति देकर चेतन और जड़ के बीच संबंध खोजने का प्रयत्न किया। रेन डेकार्ट आत्मा और शरीर को सर्वथा भिन्न स्वीकार करता . है। उसके अनुसार The soul or mind of a man is entirely different from body. दोनों में विरोध होते हुए भी उसने इनका संबंध सेतु पीनियल ग्लैण्ड को माना। यह ग्रंथि मन और शरीर का मिलन बिन्दु है। इसके सहारे मन में होने वाली क्रिया-प्रतिक्रिया का प्रभाव शरीर में पड़ता है और शरीर में होने वाली क्रिया-प्रतिक्रिया का प्रभाव मन पर पड़ता है। स्पिनोजा आत्मा और शरीर को एक ही द्रव्य के दो पहलु के रूप में स्वीकार करता है और इनमें संबंध कराने वाला ईश्वर को मानता है। लाइबनीत्स पूर्वस्थापित सामंजस्य (pre-established harmony) के द्वारा शरीर और आत्मा के सम्बन्ध की व्याख्या करते हैं। उनके अनुसार शरीर और आत्मा में सम्बन्ध का कारण ईश्वर है। ईश्वर ने शरीर-चिदणु और आत्मा-चिदणु का निर्माण कर उनमें पहले से ही सम्बन्ध नियत कर दिया है। दोनों स्वतन्त्र हैं, निरपेक्ष हैं परन्तु सहचारी हैं तथा एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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