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________________ जैसे-पशु-पक्षी आदि। इनके भी अनेक प्रकार हैं, जैसे-मछली आदि जल में रहने वाले जलचर पंचेन्द्रिय हैं। गाय, भैंस आदि भूमि पर रहने वाले स्थलचर पंचेन्द्रिय हैं। कबूतर, मोर आदि आकाश में उड़ने वाले खेचर पंचेन्द्रिय हैं। 3. मनुष्य गति-मनुष्य की अवस्था को प्राप्त करना मनुष्यगति है। मनुष्य दो प्रकार के होते हैं-संज्ञी और असंज्ञी। जिन मनुष्यों के मन होता है, वे संज्ञी कहलाते हैं और जिनके मन नहीं होता, वे असंज्ञी कहलाते हैं। संज्ञी मनुष्य गर्भ से उत्पन्न होते हैं और असंज्ञी मनुष्य मल-मूत्र, श्लेष्म आदि चौदह स्थानों में पैदा होते हैं। ये बहत सूक्ष्म होते हैं अतः हमें दिखलाई नहीं देते हैं। 4. देव गति-जो जीव देव-योनि में पैदा होते हैं, उनकी देव गति है। देवता चार प्रकार के हैं-भवनपति देव, व्यन्तर देव, ज्योतिष्क देव और वैमानिक देव। असुरकुमार, नागकुमार आदि भवनपति देव हैं। भूत, पिशाच, यक्ष आदि व्यन्तर देव हैं। सूर्य, चन्द्रमा आदि ज्योतिष्क देव हैं तथा ऊर्ध्वलोक में विमानों में निवास करने वाले वैमानिक देव हैं। 1.7 अध्यात्म की अपेक्षा से आत्मा के भेद . अध्यात्म का विकास सभी आत्माओं में समान नहीं होता अतः अध्यात्म की अपेक्षा से भी आत्मा के तीन भेद किये गए हैं-बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। - 1. बहिरात्मा-सम्यक् दृष्टि के अभाव में जब व्यक्ति अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को भूलकर आत्मा से भिन्न शरीर, इन्द्रिय, मन, स्त्री, पुरुष, धन आदि बाह्य पदार्थों में आसक्ति रखता है, तब वह बहिरात्मा कहलाता है। 2. अन्तरात्मा-सम्यक् दृष्टि की प्राप्ति होने पर जब व्यक्ति आत्मा और शरीर के भेद को समझने लगता है। बाह्य पदार्थों के
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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