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________________ . 43 1. पृथ्वीकायिक-काय का अर्थ है-शरीर। पृथ्वी है जिन जीवों का शरीर, वे जीव पृथ्वीकायिक हैं। मिट्टी, बालू, लवण, सोना, चांदी, हीरा, पन्ना, कोयला आदि पृथ्वीकायिक जीवों के प्रकार हैं। . 2. अपकायिक-पानी जिन जीवों का शरीर है, वे अप्कायिक जीव हैं। सब प्रकार का पानी, ओले, कुहरा, ओस आदि अप्कायिक जीव हैं। 3. तैजसकायिक-जिन जीवों का शरीर अग्नि है, वे जीव तैजसकायिक जीव कहलाते हैं। अंगारा, ज्वाला, उल्का आदि का समावेश तैजसकायिक जीवों में होता है। ___4. वायुकायिक-जिन जीवों का शरीर वायु है, वे जीव वायुकायिक कहलाते हैं। संसार में जितने प्रकार की वायु है, उन सबका समावेश इसमें हो जाता है। ___5. वनस्पतिकायिक-जिन जीवों का शरीर वनस्पति है, वे जीव वनस्पतिकायिक कहलाते हैं। कंद, मूल, टमाटर, ककड़ी, वृक्ष आदि का समावेश इसमें होता है। 2. त्रस आत्मा त्रस आत्मा में चैतन्य व्यक्त होता है और स्थावर आत्मा में अव्यक्त। जो जीव सुख पाने के लिए और दुःख से निवृत्त होने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमनागमन कर सकते हैं, वे जीव त्रस कहलाते हैं। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव त्रस जीव के अन्तर्गत आते हैं। उत्पत्ति के आधार पर स जीवों के आठ प्रकार हैं____ 1. अण्डज-वे त्रस जीव, जो अण्डों से पैदा होते हैं, जैसे-पक्षी, सर्प आदि। 2. पोतज-वे त्रस जीव, जो अपने जन्म के समय खले अंगों सहित होते हैं, जैसे-हाथी आदि। ... * * *
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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