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________________ जैन दर्शन का मूल परमाणु अविभाज्य है जबकि विज्ञान का एटम विभाज्य है। परमाणु मिलन के नियम जैन दर्शन के अनुसार परमाणुओं के मिलने से स्कन्ध बनता है। परमाणुओं के मिलने का मूलभूत कारण उनमें पाया जाने वाला स्निग्ध और रुक्ष गुण है। स्निग्ध और रुक्ष को वैज्ञानिक भाषा में पोजेटिव और निगेटिव विद्युत कहा जाता है। प्रश्न होता है कि स्निग्ध परमाणुओं का स्निग्ध परमाणुओं के साथ मिलन होता है या रुक्ष परमाणुओं का रुक्ष परमाणुओं के साथ मिलन होता है। जैन दर्शन में परमाणु मिलन के अनेक विकल्प मिलते हैं। यथा-स्निग्ध का स्निग्ध के साथ, रुक्ष का रुक्ष के साथ, स्निग्ध का रुक्ष के साथ, रुक्ष का स्निग्ध के साथ मिलन हो सकता है। पर यह मिलन उसी स्थिति में होता है जबकि परमाणु के गुण अजघन्य गुण वाले हों। जघन्य गुण वालों के साथ मिलन नहीं होता। जघन्य से तात्पर्य एक गुण से है तथा अजघन्य से तात्पर्य एक से अधिक गुण से है। एक गुण वाले परमाणुओं का एक गुण वाले परमाणुओं के साथ संबंध नहीं होता। इसका फलितार्थ यह है कि स्निग्ध परमाणु रुक्ष परमाणु के साथ या रुक्ष परमाणु स्निग्ध परमाणु के साथ मिलें तब वे दोनों ही कम से कम द्विगुण स्निग्ध और द्विगुण रुक्ष होने चाहिए। यदि इनमें एक ओर भी कमी हो तो उनका संबंध नहीं हो सकता। यह विजातीय अर्थात् स्निग्ध और रुक्ष परमाणुओं के एकीभाव की प्रक्रिया है। सजातीय परमाणुओं का एकीभाव दो गुण अधिक या उससे अधिक गुण वाले परमाणुओं के साथ होता है। स्निग्ध परमाणुओं का स्निग्ध परमाणुओं के साथ एवं रुक्ष परमाणुओं का रुक्ष परमाणुओं के साथ सम्बन्ध तब होता है, जब उनमें दो गुण या उनसे अधिक गुणों का अन्तर मिले। उदाहरण स्वरूप दो गुण स्निग्ध परमाणु का चार या चार से अधिक गुण स्निग्ध परमाणुओं
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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