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________________ 27 काल की दृष्टि से-काल की दृष्टि से परमाणु का अस्तित्व अनादि काल से था और अनन्त काल तक उसका अस्तित्व रहेगा। __भाव की दृष्टि से-भाव या गुण की दृष्टि से परमाणु में केवल एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श होते हैं। परन्तु वर्ण आदि की मात्रा या गुण (unit) की तरतमता के कारण उसके अनन्त प्रकार हो जाते हैं। - परमाणु इन्द्रियगम्य नहीं-परमाणु मूर्त होते हुए भी इन्द्रियग्राह्य नहीं है, क्योंकि वह सूक्ष्म है। परमाणु इतना सूक्ष्म है कि इसका आदि, मध्य और अन्त वह स्वयं ही है। इसे इन्द्रियों के द्वारा जाना नहीं जा सकता। केवलज्ञान या अतीन्द्रिय ज्ञान के द्वारा ही इसे जाना जा सकता है। परमाणु की गतिक्रिया परमाणु जड़ होता हुआ भी गतिधर्मा है। यदि बाहर का कोई प्रभाव न हो तो परमाणु की गति सदा अनुश्रेणी अर्थात् सीधी रेखा में होती है और यदि बाह्य प्रभाव हो तो परमाणु की गति और दिशा में अन्तर आ सकता है। जैन दर्शन के अनुसार परमाणु की गति न्यूनतम एक समय में एक आकाश प्रदेश से दूसरे आकाश प्रदेश पर और अधिकतम लोक के एक अन्त से दूसरे अन्त तक एक समय में हो सकती है। - अत्यन्त तीव्र वेगमय गति में परमाणु मध्यवर्ती आकाश का स्पर्श किये बिना ही गति करता है। इस गति को जैन दर्शन में अस्पृशद् गति कहा गया है। क्वांटम भौतिकी में इलेक्ट्रोन से एक कक्षा से दूसरी कक्षा में छलांग लगाने (jump) की जो अवधारणा है, वह इस अस्पृशद् गति से काफी समानता रखती है। क्वांटम छलांग में जब परमाणु ऊर्जा ग्रहण करते हैं तो उनके इलेक्ट्रोन बाह्य कक्षाओं में से किसी एक में उछल कर चले जाते हैं तथा फिर
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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