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________________ हैं। असंख्येय प्रदेशात्मक अनन्त जीव हैं। क्षेत्र से लोक प्रमाण कहने का तात्पर्य एक ही जीव सम्पूर्ण लोक में व्याप्त है, ऐसा नहीं है अपितु इसका आशय यह है कि लोक में ऐसा कोई भी स्थान नहीं है, जहाँ जीव न हो। आत्मा कभी उत्पन्न नहीं हुई अतः अनादि-अनन्त है। वह अमूर्त है। उसका विशेष गुण चैतन्य है। चैतन्य गुण के द्वारा आत्मा को जाना जाता है। इस प्रकार द्रव्य छः ही माने गए हैं, क्योंकि इनके ये विशेष गुण एक-दूसरे से नहीं मिलते। जो गुण दूसरे द्रव्यों में भी पाए जाते हैं, उनके आधार पर उन्हें स्वतंत्र द्रव्य नहीं माना जा सकता। इसलिए द्रव्य छः ही हैं। प्रत्येक द्रव्य की पर्याय अनन्त होती हैं। 4. परमाणु जैन दर्शन में छः द्रव्यों के अन्तर्गत परमाणु की स्वतन्त्र द्रव्य के रूप में गणना नहीं की गई है। उसे पुद्गल का अंश माना गया है। परमाणु पुद्गल की सूक्ष्मतम इकाई है। . परमाणु की परिभाषा परम+अणु-परमाणु का तात्पर्य है-वस्तु का अन्तिम अविभाज्य अंश। परमाणु को परिभाषित करते हुए कहा गया-अविभाज्यः परमाणु, जिसका कभी विभाग न हो, जो कभी टूट न सके, उस सूक्ष्मतम पुद्गल को परमाणु कहा जाता है। परमाणु की विस्तृत परिभाषा देते हुए लिखा गयाकारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः। एकरसगन्धवर्णो, द्विस्पर्शः कार्यलिंगरंच।। जो किसी भी पौद्गलिक पदार्थ का अन्तिम कारण है, सूक्ष्म है, नित्य है, एक रस, एक गंध, एक वर्ण तथा दो स्पर्शयुक्त है और जिसका अस्तित्व दृश्यमान कार्यों से जाना जाता है, वह परमाणु है।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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