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________________ 16 है । उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य के अनेक प्रदेश होते हैं, उन प्रदेशों के समूह को अस्तिकाय कहा जाता है। काल के अस्तिकाय नहीं होता क्योंकि काल वर्तमानवर्ती है। अतीत बीत चुका है, भविष्य अभी आया नहीं है, वर्तमान क्षणवर्ती है, उसके प्रदेश प्रचय नहीं होता । अतः काल अस्तिकाय द्रव्य नहीं है। 1. धर्मास्तिकाय पांच अस्तिकाय द्रव्यों में सबसे पहला द्रव्य है- धर्मास्तिकाय । धर्मास्तिकाय को परिभाषित करते हुए कहा गया - ' गतिसहायो धर्मः ' जीव और पुद्गल की गति में उदासीन भाव से सहायता करने वाला द्रव्य धर्मास्तिकाय है, जैसे- मछली की गति में जल । जिस प्रकार मछली में तैरने की शक्ति स्वयं में निहित होती है, पर जल के अभाव में वह तैर नहीं सकती अतः जल उसकी गति में अनन्य सहायक है। यद्यपि जल मछली को तैरने के लिए प्रेरित नहीं करता पर जब वह तैरती है तो उसके तैरने में सहायता करता है। उसी प्रकार जीव और पुद्गल में गति करने की शक्ति स्वयं में निहित है, फिर भी वे धर्मास्तिकाय के सहयोग के बिना गति नहीं कर सकते। इसलिए यह गति में अनन्य सहयोगी है। जहाँ तक धर्मास्तिकाय है, वहीं तक जीव और पुद्गल गति कर सकते हैं। अलोक में धर्मास्तिकाय का अभाव होने से जीव और पुद्गल वहां गति नहीं कर सकते। भगवती सूत्र में एक प्रसंग आता है- गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा - " भगवन् ! गति - सहायक तत्त्व ( धर्मास्तिकाय) से जीवों को क्या लाभ होता है?" भगवान् ने कहा - " गौतम ! गति सहायक तत्त्व धर्मास्तिकाय नहीं होता तो कौन आता और कौन जाता? शब्द की तरंगें कैसे फैलती ? आँख कैसे खुलती ? कौन मनन करता? कौन बोलता? कौन
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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