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________________ 206 व्यवहार दूसरों के साथ कस्ना चाहिए जैसा दूसरों से हम अपने लिए चाहते हैं। __आत्म-स्वरूप की दृष्टि से सभी जीव समान हैं। कोई छोटा । या बड़ा नहीं है। कर्मों के अधीन हो व्यक्ति ऊँच-नीच बनता है। मालिक-नौकर बनता है। किन्तु इसके आधार पर किसी को छोटा मानकर उसका शोषण करना, उसके साथ क्रूर व्यवहार करना मानवीयता नहीं है। . . भगवान महावीर ने तो यहां तक कहा कि 'मित्ती मे सव्व भूएसु' सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ मेरी शत्रुता नहीं है। इस भावना को पुष्ट करना चाहिए। आज भोजन, वस्त्र, मनोरंजन, औषधियों के निर्माण हेतु असंख्य निरपराध जीवों की हत्या हो रही है। आंकड़े कहते हैं कि जिस अनुपात में पशुओं पर अनुसंधान के नाम पर हत्याएं हो रही हैं, यदि इसी अनुपात में मनुष्यों पर अनुसंधान हो तो चार वर्ष में पृथ्वी से मनुष्य जाति ही खत्म हो जायेगी। इस प्रकार भगवान् महावीर ने 2600 वर्ष पूर्व अहिंसा और संयम के जो सूत्र दिये। उन सूत्रों का यदि अभ्यास किया जाये तो आत्मौपम्यता की भावना का विकास किया जा सकता है। 3. अहिंसा प्रशिक्षण . अहिंसा के विकास के लिए अहिंसा के सिद्धान्त को समझना ही पर्याप्त नहीं अपितु उसके लिए प्रयोग करना आवश्यक है। आज विश्व में हिंसा के प्रशिक्षण के लिए अरबों-खरबों रुपये खर्च किये जा रहे हैं। विधिवत् हिंसा का प्रशिक्षण दिया जा रहा है किन्तु अहिंसा-प्रशिक्षण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। परिणामस्वरूप समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। आचार्य तुलसी के अनुसार हिंसा के मुकाबले में अहिंसा की शक्ति कम नहीं है, अपेक्षा है उस शक्ति को
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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