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________________ अस्तित्व गुण के कारण ही द्रव्य में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यत्व सदैव बना रहता है। पदार्थ हमें उत्पन्न और नष्ट होता हुआ दिखाई देता है, पर उसका अस्तित्व नष्ट नहीं होता। 2. वस्तुत्व-जिस गुण के कारण द्रव्य कोई-न-कोई अर्थक्रिया अवश्य करता है, उसे वस्तुत्व गुण कहते हैं। अर्थक्रियाकारित्व के अभाव में वस्तु-अवस्तु बन जाती है। इस वस्तुत्व गुण के कारण द्रव्य प्रतिक्षण कुछ-न-कुछ अर्थक्रिया करता रहता है। 3. द्रव्यत्व-जिस गुण के कारण द्रव्य सदा एक सरीखा न रहकर नई-नई पर्यायों को धारण करता रहता है, वह द्रव्यत्व गुण कहलाता है। द्रव्य में होने वाले परिणमन का मूल आधार द्रव्यत्व है। यदि द्रव्यत्व नहीं हो तो द्रव्य उसी प्रकार द्रव्य नहीं हो सकता, जिस प्रकार मनुष्यत्व के बिना मनुष्य नहीं होता। 4. प्रमेयत्व-द्रव्य की पहचान का माध्यम गुण बनता है अत: जिस गुण के द्वारा द्रव्य का बोध होता है, वह गुण प्रमेयत्व कहलाता है। हमारा ज्ञान सीमित है अतः हम सभी द्रव्यों को नहीं जानते पर हमारे ज्ञान में वह शक्ति है कि हम सभी द्रव्यों को जान सकते हैं। द्रव्यों को जानने में प्रमेयत्व गुण कारण बनता है। 5. प्रदेशवत्व-जैन दर्शन में द्रव्य को सप्रदेशी माना गया है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और एक जीव के प्रदेश असंख्य होते हैं। आकाश के प्रदेश अनन्त होते हैं। पुद्गल स्कन्ध के प्रदेश दो से लेकर संख्येय, असंख्येय और अनन्त तक हो सकते हैं। परमाणु अप्रदेशी होता है। इस प्रकार द्रव्यों के संख्येय, असंख्येय और अनन्त प्रदेशों के परिमाण (माप) का आधार प्रदेशवत्व गुण बनता है। 6. अगुरुलघुत्व-यह गुण सूक्ष्म है और वाणी का विषय नहीं बनता। अगुरुलघुत्व गुण के कारण प्रत्येक द्रव्य अपने स्वरूप में अवस्थित रहता है। अपने अस्तित्व को छोड़कर दूसरे के अस्तित्व
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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