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________________ 147 मनोगुप्ति के अभ्यास से जीव एकाग्रता को प्राप्त करता है। एकाग्रचित्त वाला व्यक्ति मन से कभी भी अशुभ संकल्प नहीं करता, सदा शुभ संकल्प करता है। वचनगुप्ति से निर्विचारता प्राप्त होती है, विचार समाप्त हो जाते हैं तथा कायगुप्ति से जीव आश्रव का निरोध और संवर को प्राप्त करता है। ___ इस प्रकार पांच समिति और तीन गुप्ति-ये अष्ट प्रवचनमाताएँ श्रमण जीवन का आधार हैं। इसके आधार पर वह पांच महाव्रतों का सम्यक् प्रकार से पालन कर सकता है। और समूचे आचार को विशद्ध बना सकता है। पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति की आजीवन अखण्ड आराधना करना ही श्रमण का आचार-श्रमणाचार ___2. श्रावकाचार भगवान महावीर ने चार तीर्थ की स्थापना की-साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका।. साधु-साध्वी का आचार श्रमणाचार कहलाता है तथा श्रावक और श्राविका का आचार श्रावकाचार कहलाता है। आचरण की पवित्रता ही मानव-जीवन का सर्वस्व है। जैन दर्शन में जैसे सम्यग् ज्ञान का महत्त्व है, वैसे ही सम्यग् आचरण का महत्त्व है। केवल ज्ञान या केवल आचरण से मोक्ष नहीं मिलता, किन्तु दोनों के उचित संयोग से ही मोक्ष मिलता है। जैन दर्शन के अनुसार श्रावक व्यापार आदि के द्वारा परिवार का निर्वाह करते हुए भी धर्म की आराधना कर सकता है। एक श्रावक अहिंसा का पूर्ण रूप से पालन तो नहीं कर सकता किन्तु वह अनावश्यक हिंसा को छोड़ सकता है। अनावश्यक हिंसा को छोड़ना धर्म है। इसी प्रकार बड़ी झूठ, बड़ी चोरी का परिहार करना, परस्त्री का त्याग करना और अनावश्यक धन-संग्रह नहीं करना भी धर्म है। श्रावक अपनी शक्ति के अनुसार जितना संभव हो सकता है, त्याग करने का प्रयास करता है। .
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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