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________________ 99 पानी का भी हो सकता है। शरीर व्युत्सर्ग का नाम कायोत्सर्ग है। जिसमें अनासक्ति और निर्लोभता होती है वही व्युत्सर्ग तप की सच्ची आराधना कर सकता है। इस प्रकार बाह्य और आभ्यन्तर तप की आराधना से कर्मों की महान निर्जरा होती है। तप निर्जरा का कारण है, इसलिए तप के बारह भेदों को ही निर्जरा के बारह भेद के रूप में गिनाया गया है। तप और निर्जरा में कारण-कार्यभाव संबंध है। तप कारण है और निर्जरा कार्य है। कारण कार्य में अभेद मानकर तप के बारह भेदों को ही निर्जरा के बारह भेद बताये गये हैं। 9. मोंक्ष नौ तत्त्व में अंतिम तत्त्व है - मोक्ष। इस मोक्ष तत्त्व को प्राप्त करना ही प्रत्येक प्राणी का चरम और परम लक्ष्य है। सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होने पर आत्मा का अपने स्वरूप में अवस्थित होना मोक्ष है। तत्त्वार्थसूत्र में मोक्ष को परिभाषित करते हुए कहा गया है - ' कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः' सम्पूर्ण कर्मों का क्षय ही मोक्ष है। सम्पूर्ण कर्मों का क्षय उसी अवस्था में हो सकता है, जब नवीन कर्मों के बन्ध को सर्वथा रोक दिया जाए तथा पूर्वबद्ध कर्मों की पूरी तरह निर्जरा कर दी जाये। जब तक नवीन कर्म आते रहेंगे तब तक कर्म का सम्पूर्ण क्षय नहीं हो सकता । संवर के द्वारा नवीन कर्मों के आगमन को रोका जाता है और निर्जरा के द्वारा पूर्वबद्ध कर्मों का क्षय-नाश किया जाता है। इस प्रकार संवर और निर्जरा के द्वारा सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होता है तथा सम्पूर्ण कर्मों का क्षय होने पर मोक्ष प्राप्त होता है। मोक्ष आत्मा की उस विशुद्ध स्थिति का नाम है जहां आत्मा कर्मों के मल से सर्वथा रहित अमल और धवल हो जाती है। मुक्त आत्माएँ जहां रहती हैं, उस स्थान को भी उपचार से मोक्ष कहा जाता है। किन्तु वह मोक्ष तत्त्व नहीं है। मोक्ष तत्त्व से सिर्फ मुक्त - आत्माओं का ही ग्रहण होता है।
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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