SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .94 1. अनशन अशन का अर्थ है-आहार। आहार का त्याग करना अनशन कहलाता है। कर्मों का क्षय करने के लिए सोद्देश्य आहार का त्याग करना अनशन है। आहार के अभाव में भूखा रहना अनशन नहीं है। अनशन दो प्रकार का होता है-1. इत्वरिक अनशन और 2. यावत्कथिक अनशन। इत्वरिक अनशन-इत्वरिक अनशन एक निश्चित काल के लिए होता है। वह कम से कम एक दिन-रात्रि का भी हो सकता है और उत्कृष्ट छः महीने का भी हो सकता है। यावत्कथिक-जीवन भर के लिए आहार का त्याग करना यावत्कथिक अनशन है। इसे संथारा भी कहा जाता है। 2. ऊनोदरी ___ हर व्यक्ति अनशन-उपवास नहीं कर सकता। जो उपवास आदि नहीं कर सकता वह अपने कर्मों का शोधन कैसे करे? उसके लिए तप का दूसरा प्रकार ऊनोदरी बताया गया। ऊन का अर्थ है-कम और उदर का अर्थ है- पेट। पेट में जितनी भूख है, उससे कम खाना ऊनोदरी है। उपवास को छोड़कर नवकारसी, प्रहर, एकासन आदि का समावेश भी ऊनोदरी में ही हो जाता है। ऊनोदरी के दो भेद हैं-द्रव्य ऊनोदरी और भाव ऊनोदरी। 1. द्रव्य ऊनोदरी-भोजन, वस्त्र, पात्र आदि जितने भी उपकरण काम में लिए जाते हैं, उनमें कमी करना द्रव्य ऊनोदरी है। जैसे- प्रतिदिन दो रोटी खाते हैं तो उसमें से जितना संभव हो सके कम खाना। जितने वस्त्र, पात्र आदि काम में लेते हैं, उनसे कम का उपयोग करना द्रव्य ऊनोदरी है। 2. भाव नोदरी-कषाय को कम करना भाव ऊनोदरी है। क्रोध, मान, माया, लोभ आदि को कम करना भाव ऊनोदरी है। जैसे
SR No.022500
Book TitleJain Tattva Mimansa Aur Aachar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRujupragyashreeji MS
PublisherJain Vishvabharati Vidyalay
Publication Year2010
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy