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________________ भ्याय-शिक्षा । होता, जिगीषु रहित, सर्वज्ञके बादमें तो स्वयं सिद्ध, वादिप्रतिवादि, ही अख, काफी हैं, रत्तीभर भी सभासद, और सभापतिकी जरूरत नहीं। बस ! यह वाद ही, एक कथा है, वादके सिवाय और कोई जल्प वा वितण्डा, कथा नहीं हो सकती, जल्पका काम चादही से जब सिद्ध है, तो फिर जल्प, जुदी कथा क्यों माननी चाहिये । अगर कहोगे ! कि जल्पमें छल, जाति, निग्रह स्थानके प्रयोग होते हैं, जो कि वादमें नहीं हो सकते, यही फरक वाद-जल्पका है, तो, इसके उत्तरमें यह समझना पाहिये कि निग्रहस्थानके प्रयोग तो वादमें भी बराबर हो सकते हैं, मगर खयाल रहे, कि छल-कपट करके वादीका पराजय करना, और अपनी तरफ विजय कमलाको खींचना, यह न्याय नहीं कहाता, और महात्मा लोग, अन्यायसे, जय घा यश, नहीं चाहते। कभी भयङ्कर प्रसङ्ग पर, अपवाद मार्गमें छलका प्रयोग करना भी पड़े, तो भी क्या हुआ, एतावता जल्प-कथा, क्या वादसे जुदी हो सकती है ?, हर्गिज नहीं। बाद ही में भयङ्कर प्रसङ्ग पर, छलका प्रयोग अगर किया जाय, तो क्या राज शासनके उल्लंघनका भय होगा। वितण्डा तो बाल चापल ही है, उसे भी कथा कहने वालोंका क्या आशय होगा, उसे वे ही जाने । ___ यह न्याय विषय स्वाभाविक गहन, बहुत वक्तव्योंसे भरा है, मगर क्या किया जाय ? क्योंकि यह लेख, ग्रन्थ रूपसे तो है नहीं, जिससे संक्षेपसे भी पदार्थ तत्वकी चर्चा करनी
SR No.022484
Book TitleNyayashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherVidyavijay Printing Press
Publication Year
Total Pages48
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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