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________________ १६ । न्याय-शिक्षा । देगा? क्या उस वक्त मौन करेगा ? उस वक्त मौन करना बिलकुल उचित नहीं कहा जा सकता, अगर अप्रस्तुत-असंबद्ध बोलेगा, तो उसी वक्त, वह सभासे बाहर निकाला जायगा, अगर च प्रस्तुत संबद्ध बोलेगा तो समझो ! कि सिवाय विकल्प सिद्धिके अवलंबन, दूसरी क्या गति होगी ?, अतः विकल्प सिद्ध-धर्मीको मानना न्याय प्राप्त है । और इसीसे आश्रयासिद्ध हेत्वाभास नहीं ठहर सकता । ध्यधिकरणासिद्ध हेत्वाभास भी हेतुके पक्षधर्मत्व, सपक्षसच, और विपक्षसे व्यावृत्ति, इन तीन लक्षणोंका तिरस्कार करनेसे तिरस्कृत होजाता है । अर्थात् यह कोई नियम नहीं है. किपक्षका धर्म ही हेतु बन सकता है। अगर ऐसा नियम होता तो बतलाईए! जलके चन्द्रसे आकाशमें चन्द्रका अनुमान कैसे बनता ?, जलके चन्द्रका अधिकरण क्या आकाश है ? हर्गिज नहीं । तब भी जलके चन्द्रसे आकाशके चन्द्रका अनुमान होना जब सभीके लिये मंजूर है, तो फिर 'पक्षधर्म ही हेतु हो सकता है। यह कैसे कहा जाय ? इसीसे व्यधिकरणासिद्ध हेत्वाभास उड़ जाता है । क्योंकि व्यधिकरणासिद्धका यही मतलब है कि पक्षमें साध्यके साथ न रहनेवाला हेतु, झूठा हेतु है । मगर यह बात उक्त युक्तिसे नहीं ठहर सकती । वरना — एक मुहूर्तके बाद शकटका उदय होगा, क्योंकि इस वक्त कृत्तिका नक्षत्रका उदय होगया है ' ऐसा अनुमान कैसे बन सकेगा, और माता-पिताओंके ब्राह्मणत्वसे उनके पुत्रमें ब्राह्मणत्वका परिचय कैसे हो सकेगा। इस लिये पक्ष धर्म हो, या न हो, अविनाभाव अगर रह गया तो समझ ला! कि वह सच्चा हेतु है । अत एव " यह प्रासाद श्वेत है, क्योंकि - कौआ काला है" ऐसा अनुमान हो ही नहीं सकता। नहीं
SR No.022484
Book TitleNyayashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherVidyavijay Printing Press
Publication Year
Total Pages48
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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