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________________ न्याय शास्त्र भी, जुदे जुदे दर्शनोंके जुदे जुदे हैं-सब धर्म वालोंकी न्यायकी सडकें भिन्न भिन्न प्रकारकी हैं, तो भी, एक न्यायकी सडकके उल्लंघनका पुरुषार्थ, जिसने बराबर जमाया, और अपना बुद्धिबल पुख्ता कर लिया, उसके लिये फिर और न्यायकी सडकें दुर्गम नहीं होती; मगर जिसने, न्यायं शास्त्रकी गंध भी पहले नहीं ली, उसके लिये तो लंबी चौडी न्याय-पुस्तक, शेरकी भाँती भयंकर ही होगी, इस लिये, न्याय तत्त्वके मसालादार दो चार लुकमे छोटे २ हलके बनाके, शुरू शुरूमें अगर बालकोंको दिये जायँ, तो क्या अच्छी बात है, जिससे कि बालकोंके बुद्धि रूप पेटमें अजीर्णता, और अरुचि पैदा न होवे, और धीरे धीरे, ज्यों ज्यों रस स्वादका अनुभव बढता जाय, त्यों त्यों आगे आगे अधिक २ बडे २ न्याय-तर्कके लड्डु उडाने लग सकें, बस ! इसी विचारसे, और इसी उद्देशसे, इस न्याय-शिक्षाका जन्म हुआ है, यह छोटीसी न्याय पुस्तक, हिन्दीमें इसी लिये लिखी गयी है कि संस्कृत भाषा नहीं पढे हुए भी जिज्ञासु लोग, मजेसे इसे पढने लग जायँ । हिन्दी भाषा क्या, कोई भी आर्य भाषा, वर्तमानमें देश व्यापिनी न होने पर भी, हिन्दी-भाषाका फैलाव, अन्य भाषाओंकी अपेक्षा ज्यादह होनेसे, हिन्दी पुस्तकसे लेखकका प्रयास जितना सफल हो सकता है. उतना सफल, और · भाषाकी पुस्तकसे नहीं हो सकता, यह स्वाभाविक है, इसी लिये यह किताब, और भाषाओंको छोड, हिन्दीमें लिखी गई।
SR No.022484
Book TitleNyayashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherVidyavijay Printing Press
Publication Year
Total Pages48
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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