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________________ उपा. यशोविजयरचिते समान विशेष्यत्वप्रत्यासच्या धातुजन्योपस्थितेर्हेतुत्वात्, अत एव नातीतघटज्ञानाश्रये 'घटं जानातीति प्रयोगप्रसङ्गः न चैवमारम्भसमये 'पचती 'ति प्रयोगो न स्यात्तदा पाका - भावादिति वाच्यम्, स्थूलकालमादाय तत्समाधानात् । तस्मात् 'क्रियमाणं कृतमि'त्यन्वयानुपपत्तिरिति चेत् न, एवं सत्यारम्भकाल इव तत्पूर्वकालेऽप्येकस्थूलकालसम्भवेन ‘पचती'ति प्रयोगप्रसङ्गाद्वयवहारानुकूल प्रयोगादरस्य वस्त्वसाधकत्वात्, अन्यथा " पुरुषो व्याघ्र '' इति प्रयोगात् पुरुषस्यापि व्याघ्रत्वप्रसङ्गात् ॥ २०८ भूत विद्यमानत्व ही उन सूक्ष्मकालों का अनुगमक बनता है । तथा निष्ठाप्रत्यय का अर्थ जो अतीतत्व है, वह विद्यमानध्वंसप्रतियोगिकालवृत्तित्वरूप है । "कृतम्, ज्ञातम्" इत्यादि प्रयोग का आधारभूत जो काल उस में वृत्ति जो ध्वंस, वह उस काल से पूर्व में वर्त्ती जो सूक्ष्मकाल, उस के ध्वंसरूप है, वे ही ध्वंस 'विद्यमानध्वंस' शब्द से गृहीत होते हैं । उन ध्वंसों के प्रतियोगि जो सूक्ष्मकाल, तद्वृत्तित्वरूप अतीतत्व, धात्वर्थक्रिया में निष्ठा प्रत्यय से बोधित होता है । तादृश अतीतत्व ही निष्ठा प्रत्यय का शक्यार्थ है और वृत्तित्व में विशेषणीभूत सूक्ष्म अनेककालस्वरूप काल ही शक्यतावच्छेदक माने जाते हैं । उन सूक्ष्मकाल का अनुगमक कोई धर्म अवश्य होना चाहिए, नहीं तो अननुगम का सम्भव यहाँ पर रहता है, इसलिए उन कालों में विशेषणीभूत विद्यमानध्वंसप्रतियोगित्व ही शक्यतावच्छेदक कालों का अनुगमक बनता है, अतः अननुगम का अवसर नहीं आता है । 'क्रियमाणं' यहाँ पर 'आन' प्रत्यय का अर्थ जो उक्त वर्तमानत्व और "कृतम्” यहाँ पर "निष्टा" प्रत्यय का अर्थ जो उक्त अतीतत्व, इन दोनों का 'कृ' धात्वर्थ क्रिया में अन्वय होता है क्यों"िवातु के साथ प्रयुक्त प्रत्ययजन्य कालप्रकारकबोध के प्रति समानविशेष्यतासम्बन्ध से धातुजन्य उपस्थिति कारण मानी गई है । क्रियमाण शब्द से 'कृ' धात्वर्थ क्रिया, आधेयतासम्बन्धेन वर्तमानकालवती' अर्थात् वर्तमानकालीना ऐसा बोध होता है । इस बोध में कृधातु और उस के साथ लगनेवाला आनशु प्रत्यय ये दोनों कारण होते हैं । आनश प्रत्यय से वर्त्तमानकाल उपस्थित होता है और “कृ” धातु से धार्थ क्रिया की उपस्थिति होती है । जैसे " घट" पद से घटत्वप्रकारक घटविशेष्यक उपस्थिति होती है, उसीतरह "कृ" धातु से भी “उत्पत्यनुकूलव्यापारत्वप्रकारक तादृशव्यापार विशेष्यक" उपस्थिति होती है । वह उपस्थिति उत्पत्यनुकू व्यापार में विशेष्यतासम्बन्ध से रहती है क्योंकि वह व्यापार ही उस उपस्थिति में विशेष्यरूप से भासित होता है । उस "कृ" धात्वर्थ क्रिया में काल विशेषणरूप से भासित होता है, इसीलिए उक्तबोध को कालप्रकारकबोध कहा जाता है, वह बोध विशेष्यता सम्बन्ध से कृ धात्वर्थ क्रिया में उत्पन्न होता है, कृधातुजन्य उपस्थिति भी उक्त कृधात्वर्थ क्रिया में विशेष्यतासम्बन्ध से रहती है । इस तरह उक्त कार्यकारणभाव घटता है । इसीलिए आनश प्रत्ययार्थ वर्तमानत्व और निष्ठा प्रत्ययार्थ अतीतत्व का धात्वर्थ में अन्वय मानना आवश्यक होता है । प्रत्ययार्थ का धात्वर्थ में अन्वय माना जाता है, इसीलिए जहाँ पूर्वकाल में घट का ज्ञान हुआ हो और वर्तमान में ज्ञान न हो, इस स्थिति में “घटं जानाति" ऐसा प्रयोग
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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