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________________ नयरहस्ये ऋजुसूत्रनयः नहीं हो सकता है । अत: प्रत्यक्षज्ञान में अतीतत्व अनागतत्व इन दोनों धर्मो का सामानाधिकरण्य भी नहीं हो सकता है। तब भावत्व में अतीतानागतक्षणसम्बन्धाभावव्याप्यत्व का स्वीकार जो ऋजुसूत्र करता है वह संगत ही है। यदि यह कहे कि-'प्रत्यक्ष में भले ही अतीत और अनागत आकार का सम्बन्ध नहीं होवे, तथापि प्रत्यक्षातिरिक्त वाक्य और अनुमान से जन्य ज्ञान में तो अतीतानागताकार का सम्बन्ध होता है, वाक्यजन्यज्ञान एवं अनुमानजन्यज्ञान से भी वस्तु की सिद्धि होती ही है, अतः तादृशज्ञान में अतीतत्व का सम्बन्ध होने से ये दोनों धर्म परस्परविरुद्ध नहीं सिद्ध होते हैं, इसलिए भावों में अतीतानागतकालसम्बन्ध सिद्ध हो जायगा, तब उक्त व्याप्ति का अभ्युपगम कैसे संगत बनेगा?'-परन्तु यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि अतीत और अनागत इन दोनों आकारों का सम्बन्ध जिस ज्ञान में पूर्व में बताया गया है, वैसा ज्ञान केवल वाक्य या व्याप्तिज्ञानरूप कारण से ही नहीं होता किन्तु उस में दोष भी सहकारी रहता है । अतीत और अनागत वस्तु विषयक वासना जब किसी कारणवश प्रबुद्ध हो जाती है तब वाक्य या व्याप्तिज्ञान से भी अतीतानागत विषयक ज्ञान उत्पन्न हो जाता है, इसलिए प्रबुद्धवासनादोषजन्य होने से वह ज्ञान भ्रान्तिरूप होता है । भ्रांतिरूप ज्ञान से वस्तु की सिद्धि किसी भी वादी को मान्य नहीं है, इसलिए उस तरह के ज्ञान से अतीतानागत का सामानाधिकरण्य सिद्ध नहीं होगा, तब भाव में अतीतानागतकालसम्बन्धाभाव की व्याप्ति की सिद्धि होने में कोई बाधक नहीं दीखता है। ___ यदि यह कहे कि-'प्रत्यक्ष जैसे अनुभवरूप है वैसे ही विकल्प भी अनुभवरूप है, इसलिए अनुभवत्व दोनों में समानरूप से होता है, अतः प्रत्यक्ष और विकल्प इन दोनों में कुछ विशेष नहीं है । तब प्रत्यक्ष से वस्तु की सिद्धि होवे और विकल्प से वस्तुसिद्धि न होवे, ऐसा विशेष विकल्प में नहीं हो सकता है । तब तो उक्त विकल्प से ही भाव में अतीत अनागत क्षण सम्बन्ध सिद्ध होगा, फिर भावत्व में तादृशसम्बन्धाभाव व्याप्ति की सिद्धि कैसे होगी?-परन्तु यह कहना भी संगत नहीं है क्योंकि जैन सिद्धान्त में यद्यपि सविकल्प ज्ञान भी प्रमाण माना गया है, बौद्ध सिद्धान्त में जैसे प्रत्यक्ष ही प्रमाणरूप से मान्य है और विकल्प रूप ज्ञान प्रमाणरूप से मान्य नहीं हैं, वैसी मान्यता जैनमत में नहीं है, तो भी सविकल्पकज्ञान में सर्वत्र प्रमाणत्व का स्वीकार नहीं है, जो विकल्परूप ज्ञान दोषसहकृत कारण से उत्पन्न होता है वह अप्रमाण माना गया है और जो विकल्पात्मकज्ञान दोष से असहकृत स्वकारणवशात् उत्पन्न होता है, वह प्रा गया है। इसलिए विकल्प के प्रति कारणीभूत व्यक्ति में दोष सहकृतत्व और दोष-असहकृतत्वरूप विशेष होने के कारण, कार्यभूत विकल्पात्मक ज्ञान व्यक्ति में भी अप्रमाणत्व और प्रमाणत्वरूप विशेष अवश्य रहेगा। अतः ऋजुसूत्र के मत से प्रस्तुत अतीतानागत विषयकज्ञानरूप विकल्प प्रबुद्धवासनारूप दोष सहकृत वाक्यादि कारणव्यक्ति से उत्पन्न होता है. इसलिए प्रमाणरूप नहीं है किन्तु भ्रान्तिरूप है अतः भाव में अतीतानागतक्षणसम्बन्ध का साधक नहीं बन सकता । तब भावत्व में अतीतानागतसम्बन्धाभाव व्याप्यत्व का अभ्युपगम जो ऋजुसूत्र करता है वह अनुचित नहीं है। इस विषय का विस्तृतरूप से विचार अन्य ग्रन्थों में किया गया है ।
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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