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________________ नय रहस्ये निक्षेपविचारः १२१ नाम और इस का समाधान यह दिया जाता है कि उक्त अनुयोगद्वार सूत्र स्थापना इन दोनों का जो भेद बताया गया है वह स्थूलभेद है। सूक्ष्म विचार करने पर नामनिक्षेप में कहीं कहीं यावत्कथिकत्व नहीं भी होता, और अल्पकालस्थायित्व ही देखने में आता है । जैसे, कोई व्यक्ति जब तक पाकक्रिया करता है तब तक ही वह पाचक इस नाम से व्यवहृत होता है । वही व्यक्ति जब उपदेश करने का काम स्वीकारता है तब उस का पाचक शब्द से व्यवहार न होकर उपदेशक शब्द से व्यवहार होने लगता है, नाम का आश्रयभूत उस पुरुष के रहने पर भी पाचक नाम की निवृत्ति हो जाती है । इसीतरह कोई पुरुष पाचनक्रिया करता है तभी तक पाचक शब्द से लोग उस का व्यवहार करते हैं, वही पुरुष भाग्यवशात् पूर्ण धनवान हो जाने पर जब दानक्रिया करने लग जाता है, तब उस पुरुष का लोग दाता, दानवीर आदि शब्दों से व्यवहार करने लगते हैं । उस पुरुषरूप नामाश्रय के रहने पर भी उस का याचक यह नाम निवृत्त हो जाता है । अतः नाम में सर्वत्र यावत्कथिकत्व नहीं रहता, इसलिए यावत्कथिकत्व सभी नामों में व्यापक नहीं बन सकता । इस रीति से यावत्कथिकत्व और इत्वरत्व नाम और स्थापना इन दोनों निक्षेपों में समानरूप से रहते हैं । अतः नामनिक्षेप में स्थापना निक्षेप का समावेश करके स्थापना का स्वीकार जो संग्रहनय नहीं करता है वह संगत ही है । सूत्र जो इन दोनों निक्षेपों का भेद प्रदर्शन है उस का अभिप्राय यह है कि अधिकांश नाम यावत्कथिक ही मिलते हैं, इसलिए नाम में यावत्कfrerants का उल्लेख किया है । यदि यह कहा जाय कि - 'नाम अक्षरसन्निवेशात्मक पद स्वरूप है और स्थापना तो प्रतिकृतिरूप है अर्थात् क्रियाविशेष निर्मित प्रतिमा या चित्ररूप है, यही इन दोनों में भेद है, अतः नाम निक्षेप में स्थापना का समावेश नहीं हो सकता ।' - परन्तु यह कहना संगत नहीं है क्योंकि किसी गोपालपुत्र का इन्द्र ऐसा नाम रख देने पर वह भी नामेन्द्र कहा जाता है । अक्षरसन्निवेशात्मक पदस्वरूप ही यदि नाम हो तो गोपालपुत्र में नामेन्द्रत्व नहीं आयेगा, क्योंकि वह गोपालपुत्र द्रव्यरूप है, अक्षरसन्निवेशात्मक पद स्वरूप नहीं है । यदि यह कहा जाय कि - 'नामेन्द्र दो प्रकार से होता है, एक तो पदस्वरूप और दूसरा इन्द्रपद संकेतविषयात्मक, उस में प्रथम पदस्वरूप नामेन्द्रत्व तो 'इन्द्र' इस नाम में ही है, गोपालपुत्र रूप द्रव्य नहीं है, तो भी इन्द्र पद संकेत विषयत्वरूप नामेन्द्रत्व उस में अवश्य है क्योंकि उस के पिताने ऐसा संकेत किया है कि मेरे पुत्र का इन्द्रपद से व्यवहार किया जाय । तब तो गोपालपुत्र में नामेन्द्रत्व की अनुपपत्ति नहीं होगी' - परन्तु यह कहना भी संगत नहीं है क्योंकि 'व्यक्त्याकृतिजातयः पदार्थ:' इस गौतमसूत्र के अनुसार व्यक्ति, आकृति और जाति ये तीनों, पदार्थ माने गए हैं। इसलिए काष्ठादिनिर्मित आकृति - रूप इन्द्रस्थापना में भी इन्द्रपद संकेत विषयत्वरूप नामेन्द्रत्व क्यों नहीं रहेगा ? अतः स्थापना का नामनिक्षेप में अन्तर्भाव करना ठीक ही है । यदि यह कहा जाय कि - " इन्द्रपद संकेतविशेषविषयत्व को ही नामेन्द्रत्व मानेंगे, अन्यथा इन्द्रपद संकेतविषयत्वरूप ही नामेन्द्रत्व यदि माने, तो इन्दन आदि अर्थ क्रिया १६
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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