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________________ उपा० यशोविजयरचिते विशेषातिरेकेऽपि न प्रमाणमस्ति, विशेषाणामिव नित्यद्रव्याणामपि स्वत एव व्यावृत्तत्वात् , अन्यथा नित्यगुणेष्वपि तत्कल्पनप्रसङ्गात् । 'आश्रयविशेषेणाश्रितव्यावृते यं दोष' इति चेत् ? आश्रितविशेषेणाश्रयव्यावृत्तिरित्येव किमिति नाद्रियते ? (विशेषातिरेके) कणादमत के अनुयायी विद्वानों के सम्मत सामान्य का निराकरण करने के बाद प्रकृत ग्रन्थ से कणाद सम्मत धर्मी से अतिरिक्त विशेष का निराकरण करना है तो पहले उनका सिद्धान्त देखिये [ स्वतन्त्र विशेष पदार्थ की सिद्धि में कणादमत-पूर्वपक्ष ] - अतिरिक्त विशेष पदार्थ मानने में वे लोग युक्ति देते हैं कि जातिमान् पदार्थों का भेद जाति से सिद्ध होता है । जैसे-द्रव्यपदार्थ गुणकर्मादि पदार्थो से भिन्न है इस भेद का साधक द्रव्यत्व जाति द्रव्यपदार्थ में है । ऐसे गुण में गुणत्व जाति से गुणेतर भेद की सिद्धि होती है । घटपटादि पदार्थों में भी घटत्व-पटत्वादि जातियों से ही परस्पर भेद की सिद्धि होती है, इसी तरह एक जातिमान अवयवी पदार्थो का परस्पर भेद अवयवों के भेद से सिद्ध होता है । जसे-घटत्वरूप एक जातिमान सभी घट है, उन घटों में परस्पर भेद की सिद्धि जातिभेद से नहीं हो सकती, क्योंकि सभी घटों में घटत्व जाति एक ही है। इसलिए जहाँ जाति भेदसाधक नहीं बन सकती, वहाँ अवयवभेद से ही अवयवियों का परस्परभेद सिद्ध होता है। अवयव के भेद से व्यणुक पर्यन्त अवयवियों का भेद सिद्ध होता है, परन्तु जहाँ जाति भी समान ही है और अवयव नहीं है, ऐसे पदार्थ पार्थिव परमाणु है क्योंकि सभी पार्थिव परमाणुओं में पृथ्वीत्व जाति एक ही रहती है और परमाणु कणादमत में निरवयव माने जाते हैं । पार्थिव परमाणु भी अनेक तरह के होत हैं । जिन पार्थिव परमाणुओं से मुदग बनता है वे मुदगारम्भक परमाणु कहे जाते हैं और जिन परमाणुओं से यव उत्पन्न होता है, वे परमाणु यवारम्भक परमाणु कहे जाते हैं । इसीतरह माषारम्भकपरमाणु, गोधूमारम्भक परमाणु भी हैं। इन परमाणुओं में परस्पर भेद माना जाता है। यदि इन परमाणुओं में परस्पर भेद न माना जाय तो मुदगारम्भक परमाणुओं से यव की उत्पत्ति और यवारम्भक परमाणुओं से मुदग की उत्पत्ति का प्रसङ्ग आता है। इस प्रसंग का वारण करने के लिए इन परमाणुओं में परस्पर भेद मानना आवश्यक होता है । किंतु प्रश्न यह उठता है कि इन परमाणुओं के परस्पर भेद का साधक बने तो कौन बने ? जातिभेद से इन का भेद सिद्ध होना असम्भव है क्योंकि इन सभी परमाणुओं में एक ही पृथ्वीत्व जाति है। अवयव भी अवय षियों के ही भेदक होते हैं, निरवयव परमाणुओं के भेदक बन सकते नहीं। इसलिए कणादमत में 'विशेष'नाम का अतिरिक्त पदार्थ माना जाता है। वे विशेष पदार्थ नित्य द्रव्य में रहते हैं, नित्य द्रव्य अनन्त हैं। अत: तत्तद नित्य द्रव्यवत्ति विशेष भी अनन्त माने जाते हैं और परस्पर भिन्न माने जाते हैं । वही विशेष मुदगारम्भक परमाणु और यवारम्भक परमाणु के भेद का साधक बनते हैं।
SR No.022472
Book TitleNay Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Gani
PublisherAndheri Gujarati Jain Sangh
Publication Year1984
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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