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________________ समभिरूढनय, एवंभूतनय । १. नैगमनय : २. संग्रहनय : ३. व्यवहारनय : ४. ऋजुसूत्रनय : ५. शब्दनय : उपचार बहुल लोकव्यवहार नैगमनय कहलाता है । वस्तुतत्त्व के सामान्य धर्म का ग्रहण करनेवाली दृष्टि है । ७. एवंभूतनय : वस्तुतत्त्व के विशेष धर्म का स्थूलरूप से ग्रहण करने वाली दृष्टि । वस्तुतत्त्व के वर्तमान और स्वकीय धर्म को ग्रहण करनेवाली दृष्टि । सामान्यतः शब्द की अर्थ प्रत्यायन शक्ति का ग्रहण करनेवाली दृष्टि । ६. समभिरूढनय : प्रकृति प्रत्यय के निश्चित अर्थ द्वारा ही शब्दो में अर्थ प्रत्यायनशक्ति का ग्रहण करनेवाली दृष्टि । द्रव्य के अर्थानुकूलव्यापारकाल में ही अर्थ प्रत्यायन शक्ति का स्वीकार करनेवाली दृष्टि । नयो की यह अत्यंत स्थूल परिभाषा है । स्याद्वाद और नयवाद जैनदर्शन के विशिष्ट एवं मौलिक सिद्धांत है । 張張 34 — मुनिवैराग्यरतिविजय - षड्दर्शनसमुच्चय प्रवेशक
SR No.022471
Book TitleShaddarshan Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan
Publication Year2002
Total Pages146
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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