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________________ है। किन्तु एक प्रकार के परमाणुओं का पारस्परिक विभेद किस तरह किया जायेगा ? प्रत्येक परमाणु की अपनी विशेषता होती है। अन्यथा सभी पार्थिव परमाणुओं के पार्थिव हो-के कारण उनका विभेद सम्भव नहीं होता । परमाणुओं की अपनी अपनी विशेषताओं को 'विशेष' कहते हैं । विशेषों को मानने के कारण ही इस दर्शन की 'वैशेषिक दर्शन' कहते हैं । स्थायी तथा नित्य सम्बन्ध को 'समवाय' कहते हैं । अवयवी का अवयवों के साथ, गुण या कर्म का द्रव्य के साथ, सामान्य का व्यक्तियों के साथ समवाय सम्बन्ध पाया जाता है । वस्त्र का अस्तित्व उसके धागों में है। धागों के विना वस्त्र नहीं रह सकता । हरित वर्ण, मधुर स्वाद, सुगन्ध आदि गुण तथा सभी प्रकार के कर्म या गति द्रव्य में ही आश्रित हैं । द्रव्य के विना गुण तथा कर्म नहीं टिक सकते । इस तरह के नित्य सम्बन्ध को 'समवाय' कहते हैं । नहीं रहने को 'अभाव' कहते हैं । 'यहाँ कोई सर्प नहीं है', 'वह गुलाब लाल नहीं है', 'शुद्ध जल में गन्ध नहीं होती'-ये वाक्य क्रमशः सर्प, लाल रंग और गन्ध का उपर्युक्त स्थानों में अभाव. व्यक्त करते हैं । अभाव चार प्रकार का होता है-प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अत्यन्ताभाव तथा अन्योन्याभाव । प्रथम तीन प्रकार के अभावों को 'संसर्गाभाव' कहते हैं । संसर्गाभाव में दो वस्तुओं के संसर्ग का अभाव रहता है। १. किसी वस्तु का उत्पत्ति से पहले उपादान में जो उसका अभाव रहता है उसे 'प्रागभाव' कहते हैं। जैसे कुम्भकार द्वारा बर्तन निर्माण के पहले मिट्टी में बर्तन का अभाव रहता है । २. किसी वस्तु के ध्वस्त हो जाने के बाद जो उस वस्तु का अभाव हो जाता है उसे 'प्रध्वंसाभाव' कहते हैं। जैसे घट के फूट जाने पर उसके टुकड़ों में घट का अभाव होता है । ३. दो वस्तुओं में अतीत, वर्तमान तथा भविष्य अर्थात् सर्वदा के लिये जो सम्बन्ध का अभाव रहता है उसे 'अत्यन्ताभाव' कहते हैं, जैसे वायु में रूप का अभाव । 28
SR No.022471
Book TitleShaddarshan Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan
Publication Year2002
Total Pages146
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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