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________________ मीमांसादर्शन भौतिक जगत् को मानता है । भौतिक जगत् की सत्ता प्रत्यक्ष से प्रमाणित होती है । मीमांसा बाह्यसत्तावादी है । संसार के अतिरिक्त यह आत्माओं के अस्तित्व को भी मानता है । किन्तु यह किसी जगत् के स्रष्टा, परमात्मा या ईश्वर को नहीं मानता । जगत् अनादि और अनन्त है, न उसकी कभी सृष्टि हुई, न प्रलय होता है । सांसारिक वस्तुओं का निर्माण आत्माओं के पूर्वार्जित कर्मों के अनुसार भौतिक तत्त्वों से होता है । कर्म एक स्वतन्त्र शक्ति है, जिससे संसार परिचालित होता है। मीमांसा के अनुसार जब कोई व्यक्ति यज्ञादि कर्म करता है तो एक शक्ति की उत्पत्ति होती है जिसे 'अपूर्व' कहते हैं । इसी अपूर्व के कारण किसी भी कर्म का फल भविष्य में उपयुक्त अवसर पर मिलता है । अतः इस लोक में किये गये कर्मों के फल का उपभोग परलोक में किया जा सकता है। २. वेदान्त-दर्शन : वेदान्त-दर्शन की उत्पत्ति उपनिषदों से हुई है । उपनिषदों में वैदिक विचारधारा विकास के शिखर पहुँच गयी है। अतः उपनिषदों को 'वेदान्त' कहना अर्थात् वेदों का अन्त कहना बहुत ही यथार्थ है । यह कहना उचित होगा कि वेदान्त-दर्शन का उत्तरोत्तर विकास हुआ है । इसके मूल सिद्धान्त को हम सर्वप्रथम उपनिषदों में पाते हैं। फिर उनको बादरायण ने अपने ब्रह्मसूत्र में सङ्कलित किया है । इसके बाद भाष्यकारों ने उन सूत्रों के भाष्य लिखे हैं । भाष्यों में शङ्कर तथा रामानुज के भाष्य अधिक विख्यात हैं । अन्य दर्शनों की अपेक्षा वेदान्त-दर्शन से, विशेषतः शाङ्कर वेदान्त से, भारतीयों का जीवन बहुत अधिक प्रभावित हुआ है । __ ऋग्वेद में पुरुषसूक्त में ऐसे पुरुष की कल्पना की गयी है, जो समूचे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है तथा ब्रह्माण्ड से भी परे हैं । इस सूक्त में संसार के जड़ तथा चेतन सभी पदार्थों को, मनुष्यों तथा देवताओं को उस परम पुरुष का अङ्ग माना गया है । इस ऐक्यभाव का विकास आगे चलकर उपनिषदों में हुआ है । उपनिषदों में उनका पुरुषरूप नहीं रहा । उपनिषदों में उसे सत्,
SR No.022471
Book TitleShaddarshan Samucchay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherPravachan Prakashan
Publication Year2002
Total Pages146
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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