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________________ प्रस्तावना ལ་ विशेष कर बौद्ध पण्डितों के पूर्वपक्ष उद्धृत कर उन का विस्तृत खण्डन किया है । अनन्तवीर्य ने अकलंकदेव के प्रमाण संग्रह पर भी टीका लिखी थी । किन्तु वह उपलब्ध नही है 1 [प्रकाशन - सिद्धिविनिश्चयटीका - सं- पं. महेन्द्रकुमार, भारतीय ज्ञानपीठ, १९५९, बनारस ] ३५. अभयदेव – सिद्धसेन के सन्मतिसूत्र की एकमात्र उपलब्ध टीका अभयदेव ने लिखी है । वे चन्द्र कुल के प्रद्युम्नसूरि के शिष्य थे । उन के शिष्य धनेश्वरसूरि परमार राजा मुंज की सभा में सन्मानित हुए थे अतः उन की परम्परा राजगच्छ नाम से प्रसिद्ध हुई । तदनुसार अभयदेव का समय दसवीं सदी का उत्तरार्ध है । वादविवादों में कुशलता के कारण उन्हें तर्कपंचानन यह बिरुद दिया गया था । सन्मति की मूल १६७ गाथाओं पर अभयदेव ने २५००० श्लोकों जितनी टीका लिखी । इस से स्पष्ट ही है कि मूल विषय के अतिरिक्त दार्शनिक वादों से सम्बद्ध सभी विषयों के पूर्वपक्ष तथा उत्तरपक्षों का उन्हों ने विस्तार से संग्रह किया है । उदाहरणार्थ, सन्मति की मंगला - चरणरूप पहली गाथा की टीका में ही प्रामाण्यवाद, वेद की पौरुषेयता, सर्वज्ञ का अस्तित्व ईश्वर का निरास, आत्मा का आकार तथा मुक्ति का स्वरूप इन विषयों की विस्तृत चर्चा आगई है । इसी प्रकार दूसरी गाया की टीका में शब्द और अर्थ के सम्बन्ध के विविध वाद संगृहीत हुए हैं। दूसरे काण्ड की पहली गाथा के विवरण में प्रमाण का स्वरूप तथा उस के भेदप्रभेदो की चर्चा मिलती है । अभयदेव ने अपने समय के साम्प्रदायिक विषयों का भी टीका में समावेश किया है । ऐसे स्थल हैं २ - १५ की टीका में केवली के कवलाहार का समर्थन, ३- ४९ की टीका में ब्राह्मणत्व जाति का विचार तथा ३ - ६५ की टीका में मुनियों के वस्त्रधारण तथा तीर्थंकर प्रतिमाओं के आभूषणादि का समर्थन । ग्रन्य के विषयों की इस विविधता के कारण तत्त्वबोधविधायिनी नाम की इस टीका को वादमहार्णव यह नाम भी प्राप्त हुआ है । " 1
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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