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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः शिवार्य इस के रचयिता से भिन्न हैं या अभिन्न यह प्रश्न विचारणीय है। उन का समय सन ६७६ से पहले का है यह निशीथचूर्णि के उक्त उल्लेख से स्पष्ट है । १९.सिंहसूरि-मल्लवादी के नयचक्रपर सिंहसूरि ने टीका लिखी है यह ऊपर बताया ही है। इस टीका का विस्तार १८००० श्लोकों जितना है तथा इसे न्यायागमानुसारिणी यह नाम दिया है । तत्त्वार्थसूत्रभाष्य के टीकाकार सिद्धसेन के गुरु भास्वामी भी सिंहसूरि नामक आचार्य के शिष्य थे। यदि वे ही नयचक्रटीका के कर्ता हों तो सातवीं सदी के अन्त में या आठवीं सदी के प्रारंभ में उन का समय माना जा सकता है क्यों कि सिद्धसेन आठवीं सदी के उत्तरार्ध में हुए हैं। विधि, नियम आदि मूल विषयों को स्पष्ट करते हुए सिंहसूरि ने ज्ञानवाद, क्रियावाद, पुरुषवाद, नियतिवाद, ईश्वरवाद आदि का विस्तृत विचार किया है। [प्रकाशन-मल्लवादी के परिचय में इस टीका के प्रकाशनों की सूचना दी है। २०. अकलंक-जैन प्रमाणशास्त्र के परिपक्क रूप का दर्शन भट्ट अकलंकदेव के ग्रन्थों में होता है । बौद्ध पण्डित धर्मकीर्ति तथा उन के शिष्यपरिवार के आक्रमणों से जैन दर्शन की रक्षा करने का महान कार्य उन्हों ने किया था। कथाओं के अनुसार मान्यखेट के राजा शुभतुंग के मन्त्री पुरुषोत्तम के दो पुत्र थे - अकलंक व निष्कलंक। दोनों ने बाल वय में ही ब्रह्मचर्य धारण किया तथा एक बौद्ध मठ में गुप्त रूप से अध्ययन किया। वहां पकडे जाने पर सैनिकों द्वारा निष्कलंक तो मारे गये - अकलंक किसी प्रकार बच सके । वाद में जैन संघ का नेतृत्व ग्रहण कर अकलंक ने स्थान स्थान पर बौद्धों से वाद किये तथा विजय प्राप्त किया । कलिंग के राजा हिमशीतल की सभा में बौद्ध पण्डितों ने एक घडे में तारा देवीकी स्थापना की थी। अकलंक ने वहां वाद में विजय पाकर वह १) पं. महेन्द्रकुमार - सिद्धिविनिश्चय टीका प्रस्तावना पृ. ५३.५४. २) प्रभाचन्द्र के गद्यकथाकोश तथा नेमिदत्त के आराधनाकथाकोश में यह कथा दी है।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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