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________________ ५२ विश्वतत्त्वप्रकाशः उत्पादव्ययध्रौव्य के सिद्धान्त का उन्हों ने समर्थन किया था ऐसा कहा है । इस समय अजितयशस् का कोई ग्रन्थ प्राप्त नही है । उन का समय मल्लवादी के समान - छठवीं-सातवीं सदी प्रतीत होता है । १७. पात्रकेसरी-कथाओं के अनुसार पात्रकेसरी ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे । समन्तभद्र कृत आप्तमीमांसा के पठन से वे जैन दर्शन के प्रति श्रद्धायुक्त हुए तथा राजसेवा छोडकर तपस्या में मग्न हुए। हुम्मच के शिलालेख में उन की प्रशंसा इस प्रकार है भूभृत्पादानुवर्ती सन् राजसेवापराङ्मुखः । संयतोऽपि च मोक्षार्थी ( भात्यसौ ) पात्रकेसरी ।। . पात्रकेसरी की दो कृतियां ज्ञात हैं – त्रिलक्षणकदर्थन तथा जिनेन्द्रगुणसंस्तुति स्तोत्र । पहली रचना में बौद्ध आचार्यों के हेतु के लक्षण का खण्डन था । हेतु पक्ष में हो, सपक्ष में हो तथा विपक्ष में न हो ये तीन लक्षण बौद्धों ने माने थे । इन के स्थान में अन्यथानुपपन्नत्व ( दूसरे किसी प्रकार से उपपत्ति न होना ) यह एक ही लक्षण आचार्य ने स्थिर किया । इस की मुख्य कारिकार उन्हें पद्मावती देवी ने दी थी ऐसी आख्यायिका है । यह कारिका अकलंकदेव ने न्यायविनिश्चय (श्लो. ३२३) में समाविष्ट की है। बौद्ध आचार्य शान्तर क्षित ने तत्त्वसंग्रह (का. १३६४-७९) में इस कारिका के साथ कुछ अन्य कारिकाएं पात्रस्वामी के नाम से उद्धृत को हैं । किन्तु इन का मूल ग्रन्थ त्रिलक्षणकदर्थन अनुलब्ध है। जिनेन्द्रगुणसंस्तुति यह ५० श्लोकों की छोटीसी रचना है तथा पात्रकेसरिस्तोत्र इस नामसे भी प्रसिद्ध है। वेद का पुरुषकृत होना, जीव का पुनर्जन्म, सर्वज्ञ का अस्तित्व, जीव का कर्तृत्व, क्षणिकवाद का निरसन १) प्रभाचन्द्र तथा नेमिदत्त के कथाकोषों में यह कथा है। २) जैन शिलालेख संग्रह, भा. ३, पृ. ५१९. ३) यह का रिका इस प्रकार है - अन्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम् । नान्यथानुपपन्नत्वं यत्र तत्र त्रयेण किम् ।। ४) जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग, पृ. १०३.
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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