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________________ प्रस्तावना २९ अध्ययन,सत्रहवां पुण्डरीक अध्ययन तथा इक्कीसवां अनाचार अध्ययन ये तर्क की दृष्टि से उपयुक्त हैं । इन में पहले तीन प्रकरणों में जैनेतर मतों कापर समयों का संक्षिप्त वर्णन है । शरीर और आत्मा को एक माननेवाले ( चार्वाक ), ईश्वरवादी, पंचभूतों से आत्मा की उत्पत्ति माननेवाले ( चार्वाक ), क्षणभंगवादी (बौद्ध), ब्रह्मवादी आदि का संक्षिप्त वर्णन इन अध्ययनों में है। अनाचार अध्ययन में जैन श्रमण ने किन बातों का अस्तित्व मानना चाहिए और किन का नही मानना चाहिए इस का विवरण दिया है। यहां उल्लेखनीय है कि इन सब अध्ययनों में पूर्वपक्षों का वर्णन मात्र है-उन के खण्डन की युक्तियां नही हैं। साधु को कैसा भाषण करना चाहिए इस के दो निर्देश चौदहवें ग्रन्थ अध्ययन में हैं वेमहत्त्वपूर्ण हैं-एक में अस्याद्वाद वचन नही कहना चाहिए यह आदेश है' तथा दूसरे में विभज्यवाद के आश्रय से उत्तर देने का आदेश है। स्थानांग तथा समवायांग-इन दो अंगों में संख्या के आधार पर विविध तत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन है । इन में हेतु के चार प्रकार, उदाहरण के चार प्रकार, प्रश्न के छह प्रकार, विवाद के छह प्रकार, दोषों के दस प्रकार आदि का भी समावेश हुआ है। व्याख्याप्रज्ञप्ति-इस की प्रसिद्धि भगवतीसूत्र इस नाम से अधिक है । इस में महावीर तथा उन के शिष्यों के बहुविध प्रश्नोत्तरों का संग्रह है। इस के दूसरे तथा पांचवें शतक में पार्श्वनाथ की परम्परा के कुछ शिष्यों के संवाद महत्त्वपूर्ण हैं। पन्द्रहवें शतक में आजीवक सम्प्रदाय के प्रमुख गोशाल मस्करिपुत्र का विस्तृत वृत्तान्त उल्लेखनीय है। १) न चासियावाय वियागरेजा १।१४।१९ यहां असियावाय का अर्थ टीकाकारों ने आशीर्वाद यह किया है-प्रवचन के बीच किसी को आशीर्वाद नही देना चाहिए ऐसा अर्थ दिया है । असियावाय का अस्याद्वाद यह अनुवाद डॉ. उपाध्ये ने प्रस्तुत किया है। २)विभज्जवायं च वियागरेज्जा १।१४।२२ यहां टीकाकारों ने विभज्यवाद का अर्थ स्याद्वाद किया है। विभज्यवाद का वस्तुतः तात्पर्य है प्रश्नों का विभागशः उत्तर देना;जैसे जीव अनन्त है या सान्त है इस प्रश्नका उत्तर है-जीव काल तथा भाव की दृष्टि से अनन्त है, क्षेत्र तथा द्रव्य की दृष्टि से सान्त है ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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