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________________ टिप्पण ३३३ भ्रान्त हैं तो मीमांसक का कथन है कि सभी प्रत्यय अभ्रान्त हैं, दो ज्ञानों के अन्तर को न समझना यही भ्रान्ति का स्वरूप है । प्रत्यक्ष में सींप को देखने से 'यह कुछ है' यह ज्ञान होता है, इस का पहले देखी हुई चांदी के स्मरणरूप ज्ञान से मिश्रण हो जाता है और 'यह चांदी है' ऐसा प्रतीत होता है । अतः यहां प्रत्यक्ष और स्मरण में भेद प्रतीत न होना यही भ्रम का स्वरूप है। प्रभाकर ने बृहती टीका मे इस स्मृतिप्रमोषवाद को प्रस्तुत किया है । भ्रम के एक प्रकार का यह स्पष्टीकरण आधुनिक मनोवैज्ञानिक मान्यताओं के अनुकूल है । यद्यपि इस से सभी प्रकार के भ्रमों का स्पष्टीकरण नहीं होता । पृष्ठ १२६--सभी प्रत्यय यथार्थ हैं यह कथन प्रत्यक्षवाधित है इस का निर्देश वाचस्पति ने किया है ।२ - पृष्ठ १२९--यह चांदी है ऐसे ज्ञान से ही उस विषय में प्रवृत्ति होती हैं अतः यह ज्ञान अयथार्थ ही है इसका निर्देश भी वाचस्पति ने किया है।३ पृष्ठ १३४--मृगजल आदि भ्रम नही है-वे अतिशीघ्र नष्ट होनेवाले पदार्थ हैं यह सांख्यों का मत तथा उस का निराकरण प्रभाचन्द्र ने भी प्रस्तुत किया है। पृष्ठ १३७--वेदान्त दर्शन के अनुसार जगत् में पूर्णतः सत् केवल ब्रह्म है। किन्तु वे जगत् को पूर्णतः असत् नही मानते । यदि जगत् असत् होता तो उस की प्रतीति ही नही होती । अतः जगत् सत् और असत् दोनों से भिन्न हैऐसा उन का मन्तव्य है। १) पृष्ठ ५५ शुक्तिकायां रजतज्ञानं स्मरामि इति प्रमोषात् स्मृतिज्ञानमुक्तं युक्तं रजतादिषु। शालिकनाथकृत प्रकरणपंचिका पृ. ३४-ततो भिन्ने अबुद्ध्वा तु स्मरणग्रहणे इमे । समानेनैव रूपेण केवलं मन्यते जनः ॥ २) न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका पृ. ९०, नेदं रजतमिति च प्रत्यक्षबाधकप्रत्ययात् अपहृतविषयं प्रत्ययत्वेन विभ्रमाणां यथार्थत्वानुमानम् । ३) उपर्युक्त पृ. ९०, तत् सिद्धमेतत्र जतादिविज्ञानं पुरोवर्तिवस्तु विषयं रजतार्थिनः तत्र नियमेन प्रवर्तकत्वात् । ४) न्यायकुमुदचन्द्र पृ. ६१, न हि विद्युदादिवत् उदकादेरपि आशुभावी निरन्वयो विनाशः क्वचिदुपलभ्यते ५) ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य २।१।२७, अविद्याकल्पितेन च नामरूपलक्षणेन रूपभेदेन व्याकृताव्याकृतात्मकेन तत्त्वान्यत्वाभ्यामनिर्वचनीयेन ब्रह्म परिणामादिसर्वव्यवहारास्पदत्वं प्रतिपद्यते।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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