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________________ प्रस्तावना २. तार्किक परम्परा का उद्गम-जैन पुराणकथाओं के अनुसार प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के समय से ही विविध दार्शनिक सम्प्रदायों का उदभव हुआ है-ऋषभदेव के साथ दीक्षित हुए मुनियों में से जो तपोभ्रष्ट हुए थे उन्हों ने विविध दर्शनों की स्थापना की थी । ऐसे 'मिथ्यादृष्टि' मतों की संख्या ३६३ कही गई है। इन दर्शनों के पुरस्कर्ताओं के आक्षेप दूर करनेवाले वादकुशल मुनियों की संख्या प्रत्येक तीर्थंकर के परिवार में बताई है। तेईसवे तीर्थंकर पार्श्वनाथ के समय से हमें पुराणकथाओं के अनिश्चित वातावरण के स्थानपर इतिहास की निश्चित जानकारी प्राप्त होने लगती है । आगमों में पार्श्वनाथ और महावीर के मतों में समानता और भिन्नता के निश्चित उल्लेख मिलते हैं। उन्हें देखते हुए अब प्रायः सभी विद्वानों ने पार्श्वनाथ का ऐतिहासिक अस्तित्व स्वीकार किया है। पार्श्वनाथ का निर्वाण महावीर के निर्वाण से २५० वर्ष पहले हुआ था और पार्श्वनाथ ने कोई ७० वर्ष तक धर्मोपदेश दिया था । अतः सनपूर्व ८४७ से सनपूर्व ७७७ यह पार्श्वनाथ का कार्यकाल ज्ञात होता है। वे काशी के राजा अश्वसेन के पुत्र थे तथा सम्मेद शिखर पर उन का निर्वाण हुआ था । भगवतीसूत्र में प्राप्त दो संवादों से स्पष्ट होता है कि जगत के आकार के बारे में पार्श्वनाथ और महावीर के विचार समान थे तथा तप १) महापुराणपर्व १८ श्लो. ५९-६२: मरीचिश्च गुरोर्नप्ता परिव्राड्भ्यमास्थितः। तदुपज्ञमभूद् योगशास्त्रं तन्त्रं च कापिलम् ॥ इत्यादि. २) तत्त्वार्थवार्तिक १-२०. ३) पार्श्वनाथ के संघ में ६०० तथा महावीर के संघ में ४०० वादी मुनि थे ( महापुराण पर्व ७३ श्लो. १५२ तथा पर्व ७४ श्लो. ३७८.) ४) इस विषय में स्व. धर्मानन्द कोसंबी की पुस्तक 'पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म' उल्लेखनीय है। ५) भगवतीसूत्र ५-९-२२६ से नूणं भंते अज्जो पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं सासए लोए वुइए अणादीए अणवदग्गे परित्ते परिखुडे हेट्ठा वित्थिण्णे मज्झे संखित्ते उप्पि विसाले अहे पलियंकसंठिए मज्झे वरवइरविग्गहिए उपि उद्धमुइंगाकारसंठिए।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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