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________________ प्रस्तावना पूर्ववर्ती आचार्यों के विचारही यदि उन्हों ने व्यवस्थित रूप से संक्षेप में प्रस्तुत किये हैं तो इस में आश्चर्य की बात नही है । इस दृष्टि से हमें उन के ग्रन्थों की तुलना उन के बाद के साहित्य से करनी चाहिए । इस तुलना में दो बातें विशेष प्रतीत होती हैं । एक तो यह कि जहां बाद के साहित्य में टीका टिप्पणों की बहुलता है वहां भावसेन के ग्रन्थ स्वतंत्र प्रकरणों के रूप में लिखे गये हैं। दूसरी बात यह है कि जहां बाद के लेखकों ने प्रमाण विषय पर अधिक लिखा है वहां भावसेन ने प्रमेय विषय की ओर अधिक ध्यान दिया है । उन के ग्रन्थ संक्षिप्त तो हैं किन्तु एक विशिष्ट स्तर के वाचकों के लिए हैं । इन के समुचित अध्ययन के लिए वाद विवाद की पद्धति का - अनुमान, उस के अवयव तथा उन के गुणदोष इन सब का साधारण अच्छा ज्ञान होना जरूरी है । इस दृष्टि से यदि कहें कि परीक्षामुख का अध्ययन कर के इन ग्रन्थों को पढना चाहिए तो कोई अत्युक्ति न होगी। जैसे की पहले बताया है, लेखक के तर्क विषयक आठ ग्रन्थों में यह पहला प्रकाशित होनेवाला ग्रन्थ है। हमें आशा है कि लेखक के अन्य ग्रन्थ सम्पादित-प्रकाशित होनेपर उन के विषय में हमारा ज्ञान अधिक व्यवस्थित तथा निश्चित हो सकेगा। जैन तार्किक साहित्य के क्रमबद्ध अध्ययन में भी ये ग्रन्थ सहायक होंगे इस में सन्देह नही है ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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