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________________ २६८ विश्वतत्त्वप्रकाशः [ ८२ प्रसाध्यते प्रकृतितखं धर्मीकृत्य वा । प्रथमपक्षे सिद्धसाध्यत्वेन हेतुनामकिंचित्करत्वं स्यात् । कार्यत्वेनाभ्युपगतानां बुद्धिसुखादीनामात्मोपादानत्वेन इतर कार्याणां पुद्गलोपादानत्वेन प्रागेव समर्थितत्वात् । परमाvarकाश भूभुवनभूधर द्वीपाकूपारादीनां तु नित्यत्वसमर्थनेन कारणजन्यत्वाभावाच्च । द्वितीयपक्षे आश्रयासिद्धो हेत्वाभासः स्यात् । कथं प्रकृतितत्वस्य धर्मिणः प्रमाणप्रतिपन्नत्वाभावात् । तथा तदुक्तहेतूनामपि विचारासहत्वाच्च न प्रकृतितत्त्वसिद्धिः । तथाहि । मेदानां परिमाणादिति कोऽर्थः । स्तम्भकुम्भाम्भोरुहादिमेदान परिमाण दर्शनादित्यर्थः इति चेन्न । हेतोर्भागासिद्धत्वात् । कुतः भूभुवनभूधरद्वीपा कूपाराकाश परमाण्वादिभेदानां परिमाणदर्शनाभावात् । अथ तेषामपि भेदानां परिमाणमनुमानादागमाद् वा निश्वयत इति चेत् तर्हि देवदत्तयज्ञदत्ताद्यात्म मेदानां परिमाणस्याप्यनुमानगम्यत्वेऽपि प्रधानकारणपूर्वकत्वाभावात् तदभेदानां परिमाणैः हेतोर्व्यभिचारः स्यात् । ततश्च भेदानां परिमाणादिति हेतोः प्रकृतिसिद्धिर्न बोभूयते । सुख आदि कार्यों का कारण आत्मा है तथा अन्य कार्यों का कारण पुद्गल है यह हम ने पहले स्पष्ट किया है । तथा परमाणु, आकाश, पृथ्वी आदि नित्य हैं अतः वे किसी कारण से उत्पन्न नहीं हैं यह भी पहले स्पष्ट किया है। यहां प्रश्न संपूर्ण जगत के एक कारण के अस्तित्व का है । उस की सिद्धि उपर्युक्त हेतुओं से नही होती । इस के स्पष्टीकरण के लिये इन हेतुओं का क्रमशः विचार करते हैं । भेद परिमित हैं - स्तम्भ, कुम्भ, कमल आदि पदार्थों के भेद परिमित हैं - अतः उन का एक मूल कारण होना चाहिए यह हेतु ठीक नही । एक तो पृथ्वी, द्वीप, पर्वत, समुद्र, आकाश, परमाणु आदि पदार्थ अनन्त हैं अतः उन्हें परिमित कहना ठीक नही । दूसरे, इन सब को अनुमान या आगम के बल से परिमित भी मानें तो दूसरा दोष उपस्थित होता है- देवदत्त, यज्ञदत्त आदि आत्मा भी परिमित मानने होंगे अतः इन जड पदार्थों के समान सब आत्माओं का भी एक मूल कारण मानना होगा जो सांख्य मत के प्रतिकूल है । अतः भेद परिमित हैं इस हेतु से प्रकृति की सिद्धि नही होती । १ भेदानां परिमाणादित्यादीनाम् ।
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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