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________________ -७९] मीमांसादर्शनविचारः २५७ तदुक्तप्रकारेण याथात्म्यासंभवात् तन्मतानुसारिणां तत्वज्ञानाभावात् स्वर्गापवर्गप्राप्ति!पपनीपद्यते। [ ७९. वैदिककर्मनिषेधः।] ननु वेदमधीत्य तदर्थ ज्ञात्वा तदुक्तनित्यनैमित्तिककाम्यनिषिद्धानुष्ठानक्रमं निश्चित्य तत्र विहितानुष्ठाने यः प्रवर्तते तस्य स्वर्गापवर्गप्राप्तिर्बोभूयते। तथा हि। त्रिकालसंध्योपासनजपदेवर्षिपितृतर्पणादिकं नित्यानुष्ठानम् । दर्शपौर्णमासीग्रहणादिषु क्रियमाणं नैमित्तिकानुष्ठानम्। तद् द्वयमपि नियमेन कर्तव्यम् । कुतः अकुर्वन् विहितं कर्म प्रत्यवायेन लिप्यते। ___ [ मनुस्मृतिः ११-४४] इति वचनात्। कारीरिपुत्रकाम्येष्टयादिकमैहिकं काम्यानुष्ठानम् । ज्योतिष्टोमेन स्वर्गकामो यजेत इत्यादिकमामुष्मिकं काम्यानुष्ठानम् । श्येनेनाभिचरन् यजेत इत्यादिकं निषिद्धानुष्ठानम्। तत्क्रम निश्चित्यैतेष्वनुष्ठानेषु विहितानुष्ठाने यः प्रवर्तते स स्वर्गापवर्गों प्राप्नोति । अपि च नही हैं। अतः इस मत के अनुसरण से तत्त्वज्ञान या स्वर्ग-मोक्ष की प्राप्ति नही हो सकती। ७९. वैदिक कर्म का निषेध-मीमांसक दर्शन का मुख्य मन्तव्य यह है कि वेद का अध्ययन कर उस में कहे हुए विहित कर्म करने से ही स्वर्ग व मोक्ष की प्राप्ति होती है। दिन में तीन बार सन्ध्या, जप, देव, ऋषि तथा पितरों का तर्पण आदि नित्य कर्म हैं । दर्श (अमावास्या), पौर्णिमा, ग्रहण आदि अवसरों पर दान आदि करना नैमित्तिक कर्म है। ये दोनों कर्म नियम से करना चाहिये क्यों कि ' विहित कर्म न करने से हानि होती है। ऐसा वचन है। काम्य कर्म दो प्रकार का है। वर्षा के लिये अथवा पुत्र के लिये इष्टि करना यह ऐहिक काम्य कर्म है। स्वर्ग के लिये ज्योतिष्टोम यज्ञ करना इत्यादि पारलौकिक काम्य कर्म है। श्येन द्वारा अभिचार ( मारण) के लिये यज्ञ करना यह निषिद्ध कर्म है। इन सब कर्मों का क्रम समझ कर विहित कर्म करने से स्वर्ग-मोक्ष प्राप्त होते हैं। मोक्ष के लिये संन्यास की भी आवश्यकता नही क्यों कि 'जो १ इहलौकिकम् । २ पारलौकिकम् । ३ मारणं कुर्वन् । वि.त.१७
SR No.022461
Book TitleVishva Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size39 MB
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